देशनोदय चवलेश्वर
*निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव ज्ञान ध्यान तपो रक्त108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
सत्य को जानते हैं लेकिन सत्य को स्वीकार नहीं करते
1.मे बर्बाद हो,दुसरे को बर्बाद कर दुंगा- अनंतानुबंधी पत्थर पर रेखा के समान है जिसमे मरने ओर मारने को तैयार हो जाता है मैं बर्बाद हूं मैं हो जाऊंगा तो हो जाऊं लेकिन दूसरे को भी बर्बाद कर दूंगा मकड़ी के जाल के समान है अपनी जिंदगी भी बर्बाद कर लेता है और दूसरों को भी मार देता है यह चारों अनन्तानुबन्धी कषायों को चारों पर अच्छे से घटाया।
2.साधु झुठ बोलते-मुनि महाराज झूठ मायाचारी,लोभ आदि करते हैं लेकिन श्रावक का कल्याण हो इसी भावना के लिए यह सब करते हैं हम सब श्रावक को सुधारने के लिए करते हैं साधु श्रावक को कल्याण के मार्ग में लगाने के लिए करते हैं।
3.आसन्न भव्य-हिंसा कर रहे हो करना पड़ रही है या हो रही हैं ऐसा करना नहीं पढ़े पढ़ रही है खेती आदि करने पड़ेगी यदि हिंसा करने पड़ेगी या हिंसा हम कर रहे हो तो पापी हो आप का उद्धार नहीं हो सकता है हिंसा करनी पड़ेगी तो आसन्न भव्य हो हिंसा कर रहे हो अनंत संसारी हो हर क्रिया में पाप दिखता है लेकिन करना पड़ रहा है ऐसे जीव आसन भव्य हैं
4.दर्शन मोहनीय-दर्शन मोहनीय सब कुछ उल्टा बताती है ऐसा दर्शन मोहनीय का स्वभाव है शराब पीने वाला व्यक्ति इतना मदहोश हो जाता है उसको महसूस ही नहीं होता कि मैं बुरा कर रहा हूं उसको ऐसा नहीं लगता कि भगवान गुरु के स्वरुप को उल्टा मान रहा हूं सत्य को देखने जाता है ऐसा नहीं लगता कि सत्य ही दिखता है शराब पीना अच्छी चीज है मैं जो कर रहा हूं वह सत्य ही है अच्छी चीज है उसे खोटा बुरा नहीं लगता है मिथ्यादृष्टी को ऐसा नहीं लगता जो मुझे अच्छा लगता है वह खाता है अच्छी चीज है तीन लोक में स्वयं को जो अच्छा लगता है वही देखता है स्वयं को जो अच्छा लगता है वही देखता है पत्नी को मां मानने लग जाता है मिथ्यादृष्टि और शराबी की एक जैसी स्थिति है जो जिंदगी में देखुगां,सोचूंगा वही सत्य हैं आप दर्शन मोहनीय की गिरफ्त में हैं
प्रवचन से शिक्षा-अपनी जिंदगी को मकड़ी के जाल के समान ना बनाएं स्वयं बर्बाद हो दूसरे को बर्बाद कर दें।
सकंलन ब्र महावीर 7339918672 परम गुरु भक्त 19जुन2021
नमनकर्ता-ब्र कमलेश मोतीलाल पटवा दाखुबाई कमलेश पटवा ममता अंशिका अक्षिका अतिशय पटवा शकुंतला महावीर कविता उज्जवल प्रबल जैनआदिनाथ भगवान दशा नरसिंहपुरा ऋषभ देव मंदिर प्रतापगढ़
पुज्य सुधासागर जी के प्रवचनांश व अमृत सुधावाणी के लिए जुडे
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