शेयर
#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
महावीर जी की फिल्म विभिन्न आयामी है। आगामी दृश्य में वे देखते हैं सोलह की वय से ही वह शास्त्राध्ययन करने लगा है। फिर देखते कि करीब सालेक से वह अध्ययन करते हुए नोटबुक में कुछ लिखने भी लगा है। नोट्स तैयार करता है।
वे देखते हैं कि वह भाई बहिनों के साथ कैरम बोर्ड खेलने में लगा है। कभी ताश खेलकर मनोरंजन कर रहा है। खेलते हुए एक दूसरे को छेड़ते हैं और जोर से हंसते हैं। ही-ही, ठी ठी इतनी बढ़ जाती है कि किसी किसी क्षण माँ को बीच में आकर टोकना पड़ जाता है।
शास्त्र वाचन नियम से होता है घर में एक दिन विद्याधर ने समझाया, पारिवारिक सदस्यों को शरीर से आत्मा पृथक् है। शरीर का स्वभाव अलग है, आत्मा का अलग। जैसे धान और उसके भीतर पड़ा दाना पृथक्-पृथक् है।
विद्याधर तो समझा कर सो जाता है। दूसरे दिन मजेदार वृतान्त छिड़ गया बालक शांतिनाथ कच्ची मूँगफली चबा रहा था दाना लेता, उस पर से लाल छिलका नाखून से खरोंच कर हटाता और सफेद दाना प्राप्त कर लेता।
अचानक वहाँ से विद्याधर निकलता है, उसकी उड़ती हुई दृष्टि पड़ी शांतिनाथ के हाथों पर, जो मूंगफली का पतला छिलका नाखून से हटा रहा था। विद्याधर को दाना दिखा नहीं, सो पूँछ बैठा- क्या कर रहे हो यह ?
बारी थी उत्तर देने की; सो शांतिनाथ बोला, रात का प्रसंग उनके चित्त में सजीव था, कहने लगा-दाने से लालिमा युक्त विकार हटा कर आत्मा राम को खोज रहा हूँ। मनोरंजक किन्तु बौद्धिक उत्तर के समक्ष विद्याधर के पास हास्य के अतिरिक्त कुछ न था वह मुस्काता सा आगे बढ़ गया, निहाल हो गया घर के वातावरण पर वह तार्किक है और दूसरों के तर्क की भी इज्जत करता है। इसी उम्र में वह एक कार्य और करता है, साइकल उठाकर शहर चल देता है और मनपसंद सिनेमा देखकर लौटता है।
सिनेमा से प्राप्त आनन्द और शिक्षाओं पर चर्चा करता रहता है। सिक्के के दो पहलू स्पष्ट दिखने लगते हैं फिल्मों की रुचि तो मंदिर की लगन भी है।
बाजार जाने का मौका आता है तो किसी का आदेश टालता नहीं, आदेश सुनकर न हर्ष दिखाता, न विषाद, बस मान्य- से है। लौटकर चुप रहता है, मगर अपने द्वारा लाई गई वस्तुओं की चर्चा अवश्य प्रसन्नता से करता है।
शाम हो रही है, कोई मित्र आ गया है, विद्या उसके साथ टहलने निकल पड़ा है। घर से सीधे उस पुल की ओर जो दूधगंगा के दोनों किनारों को जोड़ता है। नदी का सामीप्य प्राप्त कर लौट आता है।
रात शुरू होती है तो विद्या के चेहरे पर एक नई प्रसन्नता शुरू हो जाती है। मंदिर जाने की प्रसन्नता। मन मैं लड्डू फूटने लगते हैं। उन का चेहरा देखकर गृह सदस्य समझ जाते ‘विद्याधर मंदिर जी जा रहे हैं।
पोस्ट-57…शेषआगे…!!!
