सभी मिलकर अपनी धर्म संस्कृति की रक्षा करें –
विनिश्चल सागर जी महाराज

पवई , ( नि.प्र . ) । दिगम्बर जैन संत का पवई में चल रहे चातुर्मास के दौरान परम पूज्य गणाचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य प.पू. श्रमण श्री 108 विनिश्चल सागर जी महाराज एवं पू . छुल्लक 105 श्री विभद्र सागर जी महाराज के द्वारा 9 अगस्त को अपने प्रवचन में कहा कि हमारी अपनी संस्कृति जो दुनिया में श्रेष्ठ है जिसके तहत समस्त जीवों की रक्षा दया त्याग तपस्या साधना को श्रेष्ठ माना गया है । अनुशासन हमारी संस्कृति का मुख्य हिस्सा है जिसकी रक्षा करना हम सभी का परम अभिषेक पूजन के उपरांत मुनिश्री की पूजन एवं कर्तव्य है । पहले के समय में शादी विवाह में घर उनके प्रवचन मिल रहे है । सायं को गुरू भक्ति की स्त्रिया एवं रिस्तेदार आपास में मिलकर भजन संध्या में समाज के नव युवक एवं सभी भोजन बनाती थी और किराये की महिलाये मातायें बहिने हिस्सा ले रही है एवं मुनिश्री के द्वारा नाचती थी । परंतु अब उल्टा होने लगा है । अब कहा गया कि जिनके जिनके जन्मदिन , शादी की किराये की स्त्रिया भोजन बनाती है और घर की सालगृह आते है वे सभी लोग होटल रेस्टोरेंट में स्त्रिया नाचती है । प्रतिदिन प्रातः जैन मंदिर में ना जाकर गुरूओं में सानिध्य में मनायें ।