शेयर 🤗 #विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)😍
मुनिसेपूर्वबनेराजकुँवर: तीन दिन, रोज-रोज जुलूस निकालकर धर्म प्रचार किया गया था। युवा सम्राट् उत्तुंग गज पर आरूढ़ होते थे नित्य सजा हुआ हाथी अपनी गज़ोचित चाल से झूमता हुआ चलता। बैंड, शहनाई और घंटे-घंटियों का नाद कानों को अच्छा लगता था।
विद्याधर मुस्का रहे थे हाथी पर बैठे-बैठे। वे हाथी पर बैठने के उपलक्ष्य में नहीं, राजसी पोशाक धारण करने के कारण नहीं, जुलूस में महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व बन जाने के सबब से भी नहीं, वे सत्य को समक्ष देखकर मुस्का रहे थे। भगवान् महावीर ने इसी तरह राज-पाट को छोड़कर शांतिघाट की राह पकड़ी थी। महावीर ने वह वह छोड़ा था, जो उनका था। यहाँ तो सब कुछ उठाया हुआ है, इसे छोड़ने में प्रसन्नता न होगी तो क्या होगा?
वे परिग्रह से लदकर अपरिग्रह पर विहंस रहे थे। वे संसार को छोड़, सार की ओर बढ़ने के लिए मुस्कुरा रहे थे। श्रावकगण उनकी तुलना राजकुमार वर्धमान से कर रहे थे तो कोई किसी सम्राट् से। जबकि उन्हें अपना स्वरूप सम्राट् तुल्य नहीं दीख रहा था। उन्हें दिख रहा था परिव्राजक महावीर का सौम्य मुखमंडल दिगम्बर महावीर का देहोजाला। देहाभा।
दो आँखें खुली रह गई हैं, वे हैं श्री महावीरप्रसाद की वे देख रही हैं, एक विशाल जुलूस अजमेर के राजपथ पर होकर चल रहा है। सारा अजमेर सजाया गया है। हर गली में तोरण द्वार, हर चौरस्ते पर बंदनवार ।
झण्डे और झण्डियों से नगर का शृंगार किया गया था, बैंड बाजों और शहनाई वालों के पीछे-पीछे २४ हाथी झूमते हुए चल रहे थे, पच्चीसवें हाथी को कुछ अधिक ही सजाया गया था, इन्द्र के ऐरावत की नाँई। हाथी पर विराजित है राजकुमार वर्धमान हाँ वर्धमान जैसे दिखने वाले भव्य प्राण राजकुमार विद्याधर उन्हें घेर कर चल रहे हैं- उत्तर भारत के तमाम गणमान्य नागरिक, श्रेष्ठी और मनीषी।
उनके पीछे सैकड़ों नारियाँ चल रही हैं देवियों की तरह कुछ मुकुट बांधकर चल रही हैं। कुछ मंगल कलश लेकर चल रही हैं। उनके पीछे है सहस्रों श्रावक बच्चे युवक अपने बड़ों के साथ संग मैत्री कर चल रहे हैं। फिर भी साथ छूट जाता है जो जहाँ वह वहीं उस दिन विद्याधर के साथ था। इससे बड़ा साथ क्या हो सकता था उन्हें किसी को कोई चिन्ता नहीं थी।
पोस्ट-93…शेषआगे…!!!