● प्राकृत जैनागम मूलग्रन्थ स्वाध्याय●
Day 24 : : तत्त्वसार गाथा 46 – 47
ग्रंथकार- आचार्य देवसेन स्वामी
प्रस्तुति- डॉ. पुलक गोयल, जबलपुर
झाणट्ठिओ हु जोई
जइ णो संवेइ णियय-अप्पाणं।
तो ण लहइ तं सुद्धं
भग्ग-विहीणो जहा रयणं।।46।।
देह-सुहे पडिबद्धो
जेण य सो तेण लहइ ण हु सुद्धं।
तच्चं वियार-रहियं
णिच्चं चिय झायमाणो हु।।47।।
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तत्त्वसार | आचार्य देवसेन स्वामी | द्रव्यानुयोग | गाथा 01-74 | शुद्ध पाठ | शब्दार्थ | व्याकरणिक विश्लेषण | व्याख्या | डॉ. पुलक गोयल :
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