विद्याधर से विद्यासागर

*☀विद्यागुरू समाचार☀* विद्याधर से विद्यासागर

#शेयर🤗

#स्वर्ण_पुष्प_से_पूजा_और_ब्रह्मचर्य_व्रत🤗

चर्चाओं को जन्मते समय नहीं लगता। डेरा पर पहुँचने के बाद ही छिड़ गई नई चर्चा इस स्वर्ण आभा से युक्त मुनि विद्यासागर के चरणों में क्या चढ़ाया जावे? सब के समक्ष विचार प्रश्न खड़ा था।मल्लप्पाजी विचारते-दे ही क्या सकते हैं, हम हैं ही किस लायक? यही प्रश्न घूम रहा था श्री जी के अंतस में स्वर्ण मंदिर देखकर लौटी थी न, सो स्वर्णिम चरणों में स्वर्ण ही चढ़ा देने का भाव आया, माँ श्रीजी जिसे सहेज कर लाई थी सदलगा से, वह स्वर्ण मुद्रिका निकाली उनने देखकर मल्लप्पाजी को संतुष्टि हुई। यह वही अंगूठी थी जिसे विद्याधर बचपन में पहिन लेते थे। माता-पिता अंगूठी देख रहे हैं उसमें प्रिय पुत्र की सुकोमल, सुन्दर और चमकदार अंगुली की झलक दिख जाती है। दोनों अवाक् । विचार क्रम नहीं छूटता जब पुत्र अपने पास नहीं, तो उसकी प्रिय वस्तु भी क्यों रखे हम, वह भी उसी की ओर कर देनी चाहिए।मल्लप्पाजी मुद्रा लेकर स्वर्णकार की ओर चल दिए और देखते ही देखते मुद्रा को १०८ स्वर्ण पुष्पों में परिवर्तित कराकर ले आए। गरीब होते हुए भी मारुति चुपके से, साथ में लाए हुए चाँदी के पुष्प पूजार्थ प्रस्तुत करने लगा। (तो फिर गरीब क्यों कहे?) उचित प्रसंग आने पर तीसरे दिन मल्लप्पाजी ने महाराज श्री ज्ञानसागरजी से आज्ञा ली और सोने की नसियां में सोने की मूर्तियों की कृपा छाया में स्वर्णाधिक महत्त्वपूर्ण गुरु और शिष्य की ठाठ-बाट के साथ पूजा की और पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा के समय अर्पित कर दिये स्वर्ण रजत पुष्प दोनों के चरणों में पूजन से सभी को आनन्द आ गया। लोग देखकर कल्पना कर रहे थे स्वर्ग की, जैसे तीर्थंकरों की पूजा कर रहे हो देवादिगण उसी पूजन के बाद मल्लप्पाजी ने अपने घर पर संकल्पित ब्रह्मचर्य व्रत को गुरुवर ज्ञानसागर के चरणों में स्पष्ट किया और उनसे विधिवत् ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया।सेठ भागचंद सोनी उपस्थित थे। मल्लप्पाजी का परिचय हिन्दी में प्राप्त कर सुख से भर गया उनका मानस विद्यासागर की दीक्षा फिर मल्लप्पाजी द्वारा पूजन, फिर उन्हीं के द्वारा ब्रह्मचर्यव्रत, सेठ जी को लगा उनका नगर धन्य हो गया। वे अपने आपको और अपने वैभवशाली परिकर को कृतार्थ हुआ पा रहे थे उस क्षण वे आत्माओं के इस संजोग पर गौरवान्वित हो रहे थे। धन्य हो रहे थे, मन ही मन उनने सोचा भी न होगा कि वैभव के इस तल पर वैराग्य खड़ा होकर मुस्काएगा और त्याग किलकारियाँ भरेगा।पोस्ट-105…शेषआगे…!!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *