
सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में मुनिश्री विरंजन सागर महाराज के परम सान्निध्य में दशलक्षणीय साधना शिविर निर्माणाधीन मंदिर में चल रहा है । जिसमें चौथे दिन यानी उत्तम शौच धर्म के दिन मुनिश्री विरंजन सागर महाराज ने शौच धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी चीज की इच्छा होना , इस बात का प्रतीक है कि हमारे पास वह चीज नहीं है तो बेहतर है कि हम अपने पास जो कुछ है , उसके लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा करें और संतोषी बनकर उसी में काम चलाएं । मनुष्य के अंदर सुचिता का भाव आना ही शौच धर्म है , मन से लोभ को हराना ही शौच धर्म है । मनुष्य के अंदर लोभ , लालच होने से मुक्ति की ओर नहीं ले जा पाता है । लोभ कषाय व्यक्ति के अंदर इतनी भर चुकी है कि वह मंदिर में भगवान के लिए पांच मिनट का समय नहीं निकल पाता है । लोभ कषाय ही आपको धर्म समझने नहीं दे रही है । धर्म से ही धन आता है न कि धन से धर्म । मनुष्य का भौतिक संसाधनों और धन – दौलत में खुशी खोजना यह महज आत्मा का एक भ्रम है ।