
भगवान की जय जयकार करके तुम्हारी जय जयकार नहीं होगी । उनके ( भगवान ) जैसी दशा प्रकट करके तुम्हारी जय जयकार होगी । उक्त उद्गार बाल ब्र . रविन्द्र आत्मन् ने तीर्थधाम सिद्धायतन में दशलक्षण महापर्व के पावन प्रसंग पर साधर्मजनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । आपने आगे कहा कि प्रवचन को अपनी भूल को नष्ट करने के लिए सुनो ।
व्यवहार के बिनाज्ञान नहीं होता●
वस्तु छूटे और राग नहीं छूटे तो क्लेश होगा। राग छूटे वस्तु नहीं छूटे तो क्लेश नहीं होगा। संक्लेश भाव से देह छूटी तो दुर्गति में जाओगे , जिसने सद्भाव का उपयोग नहीं किया समझो कि वह धन का भी उपयोग नहीं कर पाएगा। इन दिनों यानी पर्व के दिनों में सुनने मात्र से ज्ञान नहीं होता उपयोग से ज्ञान होता है। व्यवहारी को व्यवहार के बिना ज्ञान नहीं होता। कुसंग को छोड़ना ही सत्संग का साथ है धर्मी जीव की तुम प्रशंसा करोगे तो तुम्हें पुण्य बंध होगा। विषयों की संगति छोड़ने से सत्संग मिलेगा विषयों से सत्संग नहीं मिलेगा भावना पुरुषार्थ से सफल होती है। बहुत पुण्य के उदय से समागम मिलता है। मर्म ज्ञानियों के हृदय में होता है अज्ञानियों में नहीं।
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की हुआ विशेष पूजन एवं निर्वाण लाडू चढ़ाया गया
तीर्थधाम सिद्धायतन परिसर में स्थापित श्री सीमंधर जिनालय में दशलक्षण पर्व के पावन अवसर पर दस दिनों से चल रहे दशलक्षण विधान में अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की विशेष पूजन एवं भगवान वासु पूज्य के निर्वाण महोत्सव पर निर्वाण लाडू चढ़ाए जाने का कार्यक्रम बाल ब्र . महेन्द्र भैयाजी द्वारा सुमधुर स्वर लहरियों में सम्पन्न कराया गया।
जल विहार हुआ सम्पन्न
दशलक्षण समापन अवसर पर सिद्धायतन परिसर में साधर्मजनों ने विमा में श्रीजी को विराजमान कर शोभायात्रा निकाली। जिसमें लोगों ने परिसर में ही पलक – पांवड़े बिछाकर श्रीजी के विमान का स्वागत किया। भक्ति में डूबे आबाल , गोपाल एवं वृद्ध महिला – पुरुष आत्मार्थीजन चंवर दुराते हुए झूमकर नृत्य करने लगे। इस दौरान भगवान की भक्ति में लीन ब्र.पं. रविन्द्र आत्मन् भी चंवर दुराते रहे।