शेयर
#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
श्रद्धाकेडेरापरफ्लूकाझंड़ा:
सम्पूर्ण अजमेर चाँद और सूरज का प्रकाश का एक साथ पा रहा था। लोगों में भक्ति संचार करने वाली लहरों का क्रम बढ़ता जा रहा था। तभी वहाँ आँखों की बीमारी फैली-‘आई फ्लू’।
उसका राज्य हर आँख पर दिखने लगा। जिन आँखों में मुनियों की छवि अँजी रहती थी वे आँखें भी फ्लू से फूलकर बोझल और जलनशील हो गई थीं। फ्लू फ्लू था, वह अपने प्रकोप के झंडे सबके नेत्रों पर फहराते हुए देखना चाहता था। चाहे वह रागी हो चाहे विरागी फ्लू सबसे रार लेता बढ़ता चला जा रहा था।
मुनि संघ की ओर भी बढ़ा और बेचारे त्यागियों को सताने लगा। संघ में उस रोग से बच सके केवल ज्ञानसागरजी। शेष तो एक के बाद एक पीड़ित होते गए। बार किया फिर मुनि विद्यासागर पर, साधनाशील मुनि आई-फ्लू की माया से अपरिचित थे जिनके चित्त में कभी कोई विकार प्रवेश न कर सका था, उनके नेत्रों में फ्लू प्रवेश कर गया! आँखों में तेज जलन होने लगी।
लाल/सुर्ख आँखें सूखती तो अंगारा दिखती, गीली होती तो गुलाब जामुन श्रावक इन अंगारों और गुलाब जामुनों का दर्द अच्छी तरह जानते थे अतः चिकित्सा के लिए प्रयास करने लगे।
सप्ताह से चलकर माह पूर्ण हो गया, आँखों में आराम न लगा। विद्यासागरजी न पढ़ पाते, न सामायिक कर पाते, बैठे रहते गुरुवर ज्ञानसागरजी के पास और उनके मुखारबिन्दु से स्वाध्याय सुन अपनी सामायिक पूरी करते। यह क्रम करीब दो माह चला। एक तो आँखों में भारी वेदना, ऊपर से महाराज जी एक दिन के अंतर से आहार लेते, एक दिन उपवास रखते भक्तगण बेचैन हो जाते। लोग ‘दूबरे पै दो आषाढ’ की कहावत कहते और चुप रह जाते, काश उनकी बातें महाराज मानते होते!
पोस्ट-113…शेषआगे…!!!