विद्याधर से विद्यासागर

*☀विद्यागुरू समाचार☀* विद्याधर से विद्यासागर

शेयर 🤗 #विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)😍

वैराग्यकेबीज :

दो माह तक ज्ञानसागरजी के प्रवचन श्रवण का सुयोग पाया, वे
बालकद्वय जो कुछ समझ रहे थे, उससे कोई पृथक भूमि का निर्माण हो रहा था उनके किशोर हृदय में, जिसे वे स्वतः न अनुभूत कर पा रहे थे।

गुरु ज्ञानसागरजी अपने प्रवचन के पूर्व आदि-महामंत्र- णमोकार अवश्य बोलते थे, फिर चत्तारिदण्डक का पाठ करते थे। बालक अनन्त और बालक शांतिनाथ ने दो माह में उन्हीं दो बातों पर अधिक ध्यान दिया और उन्हीं को गुना। भाषा की मजबूरी जो थी।

प्रवचन की गंभीरताएँ और शिक्षाएँ वे अपने मानस में उतारने का प्रयास करते, पर बाल मानसिकता की अपनी खूबी होती है। उन्हें धर्म भी अच्छा लगता तो घर भी अच्छा लगता, उन्हें शिक्षाएं आकर्षित करती तो खेलकूद में भी पसंद बनी रहती। यह कि दो माह का समय व्यतीत कर देने के बाद भी कोई यह नहीं समझ सका था कि बालक अनन्त और शांति भी, आगामी किसी वर्ष मुनि बन सकते हैं।

उनकी ऐसी कोई बाह्य तैयारियाँ भी तो देखने में नहीं आई थीं उस वर्ष केशरगंज के राजस्थानी भाषा भाषियों के मध्य कुछ सप्ताह से कन्नड़ भाषा वालों का जमाव स्पष्ट देखने मिल रहा था। वे अपने क्षेत्र से आये प्यारे युवा योगी मुनि विद्यासागरजी का प्रवचन सुनना चाहते थे, वह भी कन्नड़ में हिन्दी पूरी-पूरी जो नहीं आती थी उन्हें।

मुनि विद्यासागरजी की दीक्षा का यह दूसरा वर्ष ही था। वे प्रवचनादि अपने गुरु के आदेश से ही करते थे। कन्नड़ भाषा भाषी श्रावकों ने एक दिन पूज्य ज्ञानसागरजी के समक्ष अपनी भावना रखी। ज्ञान के सागर आचार्य ज्ञानसागर ज्ञान को किसी भी भाषा में जनहित की ओर स्फुरित होता देखना चाहते थे। उन्होंने युवा शिष्य विद्यासागरजी को संकेत कर दिया।

पोस्ट-117…शेषआगे…!!!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *