विद्याधर से विद्यासागर

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कन्नड़ भाषा भाषी श्रावकों ने फिर मुनि विद्यासागरजी से प्रार्थना
की, उनने निवेदन स्वीकार करते हुए प्रवचन दिया। प्रवचन से पूर्व किसी विद्वान् ने पूछा था महाराज आपको वैराग्य भाव कैसे ही आया था? चूँकि मुनि विद्यासागर प्रवचन देने वाले थे, सो उनने पृथक् रूप से कोई उत्तर न दिया, बोले- बस, वही तो सुना रहा हूँ।

मुनिश्री ने कन्नड़ बोली में सुन्दर प्रवचन किया। श्रावक मंत्रमुग्धसुनते रहे। उन्होंने उस बोली में बतलाया था मुझे नौ वर्ष की उम्र में वैराग्य के दर्शन हो गए थे, जब पूज्य शांतिसागर जी के प्रवचन ग्राम शेडवाल में सुनने का लाभ मिला था। उस समय उनने तीन सुन्दर किस्सों का जिक्र किया था, जो मुझे उसी क्षण प्रभावनाकारी सिद्ध हुई थीं। वे सभी धर्म पर विश्वास करने की प्रेरणा देतीं थीं। उन्हीं से वैराग्य भाव मन में आया था।

मुनि विद्यासागरजी ने कथाओं का संक्षिप्तोल्लेख किया था उस रोज। उनमें से एक प्रसंग यहाँ एक पंडित प्रतिदिन अपने कुँए में घुसकर जल देव की पूजा करता था और लोगों को बतलाता था कि उसे पूजनोपरांत जल देव के दर्शन होते हैं। इस तरह की चर्चा से जहाँ वह अपने धर्म को औरों से उच्च बतलाता था, वहीं सामान्य लोगों के बीच महत्त्वपूर्ण भक्त जाना जाता था। उसकी दूर-दूर तक इज्जत होती थी।

एक दिन एक ग्वाला उसके पूजन के समय आया और निवेदन किया पंडित जी, हम भी जल देव के दर्शन और पूजन करना चाहते हैं। पंडित उसकी बातों पर खूब हँसा- तुम हमारी तरह न तो पूजा कर सकते, न भक्ति, न प्रसाद चढ़ा सकते और न मन्त्र बोल सकते, वह गुण

सिर्फ मैं जानता हूँ।

  • जो हो पंडित जी हमें भी बतलाओ। – बताऊँ?…… सुन कुँए में डूब कर स्वर साधना पड़ता है। तब कहीं जाकर भगवान् दर्शन देते हैं।

-अगर मैं कुँए में घुस जाऊँ और डूब कर उन्हें खोजूँ तो मिल जाएँगे?

-पंडित लापरवाही से बोल बैठा

  • हाँ मिल जाएँगे, पहले घंटे, दो घंटे कुँए में नाक बंद कर डूबना

सीखना पड़ेगा।

पोस्ट-118…शेषआगे…!!!

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