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#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
ज्ञानकेसमुद्रमेंपीड़ाकाज्वालामुखी:
कुछ दिनों से पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर के शरीर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी थी। उनका कष्ट लोगों से न देखा जाता हर गठान में दर्द। घुटने, टिहुनी आदि सभी जोड़ों में पीड़ा दर्द होना भी स्वाभाविक था, क्योंकि उम्र भी तो ८० को पार कर चुकी थी।
गर्दन का दर्द पृथक् लेटते समय गर्दन को उठाकर हाथ का सिराना बना लेते, फिर लेटते। विद्यासागरजी के साथ-साथ अन्य लोगों को भी बात समझ में आ गई कि लेटते समय गुरुजी के सिर के नीचे कुछ तकिया जैसा लगा रहे तो उन्हें आराम मिलता है। विद्यासागर उनके समीप ही लेट जाते और अपनी भुजा का सिरहाना बनाकर उनकी गर्दन के नीचे लगा देते। दोनों लेटे रहते।
श्रावकों को गुरु जी की वेदना स्पष्ट रूप से समझ में आ रही थी। उन्होंने एक छोटी सी काष्ठ की चौकी बनवाई और जब ज्ञानसागर लेटने लगे तो उनके सिरहाने लगा दी ज्ञानसागरजी यह देख उठकर बैठ गए।
पहले दिन ही तकिया के लिए सामान्य रूप से मना कर दिया था। सो चौकी को उठाकर अलग कर दिया। पुनः दूसरे दिन श्रावकगण शाम के समय, उसे ले आये तो अपने परम भक्त) कजौड़ीमल को पास में बुलाकर ज्ञानसागरजी व्यंग से बोले… लकड़ी का तकिया तो गड़ेगा, क्योंकि यह कड़ा रहता है, ऐसा करो इस पर चारों तरफ से एक मुलायम मखमल की गद्दी लगा दो, ताकि फिर अच्छी नींद आये।
ज्ञानसागरजी की शब्द-वर्षा से लज्जित कजौड़ीमल चौकी उठाकर नौ दो ग्यारह हो गए। विद्यासागर को मिला आदर्श का पाठ गुरु के हर आदर्श को वे खुली नजर से देखते-समझते, उससे प्रेरणा लेते और अपने जीवन में उतारते चलते।
चौकी की बात उनके तपस्या प्रधान हृदय में गहराई तक समा गई उस रोज। वे पल-पल अपनी तपस्या पर ध्यान रखते कोई शिथिलाचार न आ पाए सचेत रहते।
पोस्ट-120…शेषआगे…!!!