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#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
ब्र. #पन्नालालकीसमाधि :
जिस स्थल पर मुनि प्रवर ज्ञानसागरजी अपने शिष्य विद्यासागर के साथ चातुर्मास अवधि पूर्ण कर रहे थे उसे कुछ लोग केशरगंज कहते थे, कुछ केशरियागंज। इसी केशरियागंज में तात्कालीन ब्रह्मचारी श्री पन्नालाल जैन अपने जर्जर शरीर की फटकार सहते सहते, पीड़ा महसूस करने लगे थे।
उन्हें एक दिन विद्यासागरजी ने समाधि मरण के विषय में गंभीरता से समझाया। युवा मुनि की बातें वृद्ध ब्रह्मचारी को जगाती हुई सी लगी। वे काफी सोच विचार करते रहे।
दूसरे दिन वे सीधे मुनि ज्ञानसागर के चरणों के निकट पहुँचे और हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे- हे संतप्रवर, यह शरीर धोखा देने लगा है, इसमें शक्ति नहीं बची है, यह तपस्या के पथ पर चल आत्मा को विघ्न पहुँचा रहा है, स्वतः जर्जर और निरर्थक हो रहा है।
आत्मा को भी जर्जर कर देना चाह रहा है सो कृपा कर मुझे सल्लेखना- व्रत प्रदान करें, ताकि मैं स्वेच्छा से इसका त्याग कर सकूँ और इसके चक्कर से आत्मा को मुक्त कर सकूँ।
पोस्ट-121…शेषआगे…!!!