03 अक्टूबर – समाधी दिवस विशेष मासोपवासी आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज

परम पूज्य आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज का जन्म सन 1917 में आसोज सुदी चतुर्थी तदनुसार 20 अक्टूबर 1917 को ग्राम श्यामपुरा, जिला मुरैना (म.प्र.) में हुआ था| आपने सन 1968 में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार 11 अप्रैल 1968 को आचार्य श्री 108 विमल सागर जी महाराज (भिंड) के कर-कमलों द्वारा मुरैना नगर में ऐलक दीक्षा ग्रहण कर ऐलक श्री वीर सागर जी महाराज नाम पाया| तप-त्याग-साधना के मार्ग पर अविरल बढ़ते हुए आपको लंगोट भी भार स्वरुप लगने लगी| अतः आप सन 1968 में अगहन बदी द्वादशी तदनुसार 17 नवम्बर 1968 को गाज़ियाबाद (उ.प्र.) में मुनि दीक्षा अंगीकार कर आत्म-कल्याण के मार्ग पर आरुढ़ हुए| मुनि रूप में आपने दिगम्बर मुनि की चर्या, उनके मूलगुणों की साधना तथा उनके तपश्चर्या के विविध आयामों से जैन समाज को परिचित करवाया|
इस परंपरा के पंचम पट्टाधीश परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के प्रमुख शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने पूज्य आचार्य-प्रवर के समाधि दिवस के अवसर पर उनके चरणों में अपनी विनयांजलि अर्पित करते हुए बताया कि आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज का नाम श्रमण परंपरा के गौरवशाली इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है| आपकी मुनिचर्या सदा आगमोक्त रही तथा तप व संयम की निरंतर साधना के फलस्वरूप आप मासोपवासी के रूप में प्रख्यात हुए| आपके उपदेशों से अनेक आर्षमार्गानुयायी ग्रंथों का प्रकाशन हुआ| आपने अपने जीवन काल में समस्त भारत में व विशेषतः उत्तर भारत में सतत विहार करते हुए अद्वितीय धर्मप्रभावना संपन्न की|
आपके संस्कारित प्रवचनों व विलक्षण सोच तथा संघ सञ्चालन कुशलता को परखते हुए गुरुवर आचार्य श्री 108 विमल सागर जी महाराज (भिंड) की आज्ञानुसार सन 1973 में ज्येष्ठ सुदी पंचमी तदनुसार 6 जून 1973 को चतुर्विध संघ की उपस्तिथि में मुरैना (म.प्र.) में आचार्य पद से सुशोभित कर आपको आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) की परंपरा में चतुर्थ पट्टाधीश के रूप में प्रतिष्ठित किया| आपके धर्मप्रेरक उपदेशों से प्रभावित होकर समाज ने अनेक विद्यालय, धर्मपाठशालायें, वाचनालय, साधना आश्रम तथा साहित्य प्रकाशक संस्थाओं की स्थापना की| आप एक कुशल जौहरी थे जिन्होंने आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज जैसे अनमोल रत्न को परख कर उन्हें मोक्षमार्ग के दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में तराशा तथा अपना पट्टाचार्य पद प्रदान कर गौरवशाली छाणी परंपरा को आगे बढ़ाया|
सन 1994 में क्वार बदी त्रयोदशी तदनुसार दिनांक 03 अक्टूबर 1994 को सिद्धक्षेत्र सोनागिर जी, जिला दतिया (म.प्र.) में समाधिपूर्वक मरण कर इस नश्वर देह का त्याग किया| पूज्य आचार्य श्री का जितना विशाल एवं अगाध व्यक्तित्व था, उनका कृतित्व उससे भी अधिक विशाल था| आचार्य श्री के कर-कमलों द्वारा 90 से अधिक भव्य जीवों ने जैनेश्वरी दीक्षा अंगीकार कर अपना जीवन धन्य किया जिनमें वर्तमान में आचार्य श्री 108 विवेक सागर जी, एलाचार्य श्री 108 नेमि सागर जी, बालाचार्य श्री 108 संयम सागर जी, मुनि श्री 108 वैराग्य सागर जी, गणिनी आर्यिका श्री 105 चन्द्रमति जी, गणिनी आर्यिका श्री 105 कीर्तिमति जी, गणिनी आर्यिका श्री 105 भाग्यमति जी आदि साधनारत हैं| इस गौरवशाली महान परम्परा में वर्तमान में सहस्त्राधिक दिगम्बर साधु समस्त भारतवर्ष में धर्मप्रभावना कर रहे हैं तथा भगवान महावीर के संदेशों को जनमानस तक पहुंचा रहे हैं|
संकलन – समीर जैन (दिल्ली)