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#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
परम पूज्य आचार्य #विद्यासागरजी का नवीन परिचय;
नदी, पर्वत, महाद्वीप और महासागर पर से हटकर चलता है जिनका परिचय उन्हें कागज स्याही में कैसे बाँधा जा सकता है। नदी जो देश में ही नहीं, विश्व में सबसे बड़ी हो वह है नील नदी, छः हजार किलोमीटर से अधिक है उसकी लम्बाई पर्वत जो विश्व में हजारों पर्वत के मध्य सर्वाधिक ऊँचा हो वह है एवरेस्ट, भारत के उत्तर में तपस्वी की तरह अवस्थित पर्वतराज हिमालय साढ़े आठ किलोमीटर से अधिक ऊँचाई तक जाता है।
विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप एशिया, जिसका क्षेत्रफल करीब साढ़े चार करोड़ वर्ग किलोमीटर तक फैला है और विश्व का सर्वाधिक विशाल महासागर प्रशांत, जो क्षेत्रफल और गहराई में अन्य अनेकों सागरों से अधिक एक करोड़ पैंसठ लाख वर्ग किलोमीटर तक विस्तार लिये हैं, जो गहराई में ६०३३ फीट, माने करीब ग्यारह किलोमीटर से अधिक है।
कहने का मतलब जो विश्व में सबसे बड़े हैं, उनके मान और प्रतिमान नप चुके हैं और वे अपनी तमाम विशालताओं के साथ कागज पर अंकन पा चुके हैं, परन्तु समाज के मानस में एक व्यक्तित्व ऐसा है जो नित नई सीमाओं तक विस्तृत हो रहा है, उसे कोई नाप ही नहीं पाता, कोई अंकित नहीं कर पाता।
जो करता है, वह दूसरे दिन ही कुछ और जोड़ने बैठ जाता है, अपने कागज-पत्तर में वह व्यक्तित्व किसी नदी, पहाड़, समुद्र, महाद्वीप का नहीं है वह है एक ‘संत’ का। ऐसे संत का जो कलयुग में भी ‘सतयुगी’ कहलाता है।
एक ऐसे मुनि का जो तमाम मुनियों के मध्य हिमालय है, नील है, एशिया है, प्रशांत है।
पोस्ट-123…शेषआगे…!!!