विद्याधर से विद्यासागर

*☀विद्यागुरू समाचार☀* विद्याधर से विद्यासागर

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सच, उनके आदर्श हिमालय से ऊँचे हैं, उनकी वाणी से निःसृत ज्ञानगंगा नील से बड़ी है, उनके यश के फैलाव के समक्ष एशिया महाद्वीप का क्षेत्रफल छोटा लगने लगा है और उनकी चिन्तन मनन की गंभीरताएँ प्रशांत सागर को उथला सिद्ध कर रही हैं।

वे परम गुरु, वे परम धन्य संत, वे आचार्यस्न, वे चरित्र चूड़ामणि, वे तपः पूत, वे ज्ञानसूर्य, वे उपसर्गजित, वे ,वे विश्रुत-जोगी, वे समाधि विशेषज्ञ, वे महामुनीश्वर, वे धर्म प्रवर्तक, वे महाप्रभावनाकारी त्यागी, वे महादार्शनिक, वे आचारांग के महानिर्देशक, वे महान् व्याख्याता, वे सिद्धान्तचक्रवर्ती, वे आध्यात्मिक काव्य के महान् सृजक, वे महापांडित्य सिक्त श्रावकहितैषी, वे जगोद्धारक, वे करुणाकर, वे विश्ववन्द्य आचार्य शिरोमणि विद्यासागरजी मुनि महाराज ही हैं।

उन्हें मनुष्य तो ठीक, अदृश्य देव, देवांगनाएँ, व्यंतर तक नमोऽस्तु कर धन्य होते हैं। उन्हें सिद्ध/अतिशय तीर्थक्षेत्र अपने संरक्षणार्थ सदा पुकारते रहते हैं और उनके शुभागमन से ही हँसते-मुस्काते हैं।

भयावह बियावान जंगल उनके पावन चरणों से हरित उद्यानों की तरह झूमने नाचने लगते हैं। मरुस्थल की रेत का उनके स्पर्श से जी जुड़ा जाता है। बुन्देलखण्ड की सौधी माटी उनके मुक्त-विहारों से सौभाग्यवती की तरह नतमस्तक हो अपनी अंजुली से हर वर्ष फसलों के अर्घ्य चढ़ाती है।

वे जहाँ जाते हैं वहाँ अधर्म का अंधकार विलुप्त हो जाता है और धर्म के दीप जगमगाने लगते हैं। नदियाँ, अपने शुष्क स्तनों से पुत्रवती माताओं की तरह, अमृत बिन्दु देने लगती हैं। असामाजिक तत्त्वों की तरह खारे कुएँ, बावली, सेवावृत्ति कर रहे चरित्रवान श्रावकों की तरह, अपने पानी को मीठा कर जन-सेवा में लग जाते हैं। तब किसे न लगेगा कि वे परम पूज्य विद्यासागर हमारे नगर भी पधारें और हमारे क्लान्त मनो को धर्म-वचनों से अभिसिंचित कर हम में वास्तविक चरित्र की प्रभावना करें। यही है उनका वर्तमान परिचय, यही है उनका वास्तविक भक्ति गान और यही है उनका बिरद

पोस्ट-124…शेषआगे…!!!

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