विद्याधर से विद्यासागर

*☀विद्यागुरू समाचार☀* विद्याधर से विद्यासागर

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शरद पूर्णिमा की रात्रि आश्विन शुक्ल १५ सम्वत् २००३, दिन गुरुवार को ग्राम सदलगा (जिला-बेलगाँव, कर्नाटक) में, प्रातः स्मरणीय माता श्रीमंती जी एवं नर-स्न पूज्य मल्लप्पाजी जैन के यहाँ जन्म लेने वाले शिशु का वर्तमान परिचय यही तो है।

बिन्दु जैसे सिन्धु बन गया हो। पूर्णिमा का चाँद जैसे सूर्य बन गया हो। जन्म नाम ‘विद्याधर’ किन्तु शिशुचित मिष्ठ-वाणी के कारण पाँच वर्ष की उम्र से तोता’ कहलाने •लगे। किशोर अवस्था का तोता जितना मधुर गाता बोलता उतना ही नटखट था, पर धार्मिक प्रवचन, धार्मिक अनुष्ठान और धर्मायतन के प्रति अनुकूल प्रवृत्ति भी थी उसमें

लौकिक शिक्षा के नाम पर हाई स्कूल तक तो पढ़ सके पर फिर मन / आत्मा ने भीतर ही भीतर कोई सत्याग्रह छेड़ दिया, सो शालायी-पढ़ाई बंद कर, धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। मन मुनियों के पग तलों की ओर खिंचने लगा। सदलगा या उसके आसपास जब भी कोई मुनि-संघ आता, विद्याधर की उपयोगिता वहाँ स्वयमेव प्रारम्भ हो जाती।

२० वर्ष की उम्र में घर छोड़कर वे आचार्यवर्य देशभूषणजी महाराज का सामीप्य पाने जयपुर पहुँचे। कुछ समय उनके पास रहे फिर वे संघ के साथ विहार करते हुए पुनः अपने नगर के समीप श्रवणबेलगोला आ पहुँचे।

देशभूषणजी महाराज दक्षिण भारत को कुछ अधिक समय देना चाहते थे, अतः विद्याधर को लगा कि किसी दिन उसके माता-पिता वहाँ आकर वापस घर न ले जाये, उन्हें एक आकांक्षा भी थी- वे जल्दी से जल्दी दिगम्बरी जैन दीक्षा धारण करना चाहते थे अतः एक दिन उनने देशभूषणजी महाराज के चरण छूकर पुनः उत्तर भारत को प्रस्थान कर दिया और अजमेर अवस्थित मुनिश्री ज्ञानसागरजी के चरणों में पहुँच गये। ज्ञानसागरजी ने विद्याधर नाम के बाल-योगी में संभावनाएँ देखी और अपना आशीष प्रदान किया।

वर्ष पूरा न हो पाया और एक दिन ३० जून १९६८ को मुनि श्री ज्ञानसागरजी ने उन्हें मुनि दीक्षा प्रदान कर दी। वे हो गये मुनि विद्यासागर ।

पोस्ट-125…शेषआगे…!!!

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