शेयर
#विद्याधरसेविद्यासागर (किताब)
गुरुवर की छाया से छूटे आचार्य विद्यासागर स्वतः छायावान हो गये और उनकी छाया तले धीरे धीरे कई नये, चरित्र और ज्ञान के पौधे फलने फूलने लगे।
वे परम ज्ञानी विद्यासागर जैन वाङ्मय के अधिकारी विद्वान् के रूप में देश की माटी की गरिमा बढ़ा रहे हैं। अनेको महान् ग्रन्थों का सार्थक अध्ययन करने वाले इस महायोगी ने कुछ अपने पास रख छोड़ने का प्रयास नहीं किया। वे खौर खौर, दोर दोर घूमकर जिनवाणी का प्रसाद बाँट रहे हैं।
उनके प्रवचन, प्रमेय बिन्दुओं की तरह हर दिशा में फैल रहे हैं और ज्ञान के जागरण को अमरत्व प्रदान कर रहे हैं। इतना ही नहीं, आचार्य विद्यासागरजी ने अब तक अनेक श्रेष्ठ ग्रन्थों की रचना की है जिनमें ‘मूकमाटी’ नामक महाकाव्य विश्व की अप्रतिम रचना बनकर साहित्य संसार और आध्यात्मिक संसार को गौरवान्वित कर रहा है।
उनने प्राकृत संस्कृत के बीस ग्रन्थों का छन्दबद्ध ललित अनुवाद भी किया है। इन सब के चलते उनके पाँच मौलिक काव्यसंग्रह, छह संस्कृत शतक संग्रह और बीस प्रवचन-संग्रह जैनाजैन पाठकों को दिशा ज्ञान दे रहे हैं। स्फुट रचनाएँ अलग ही हैं।
वे ध्यान में अजेय हैं। बरसते पानी ने, नदियों की खरेरो ने, श्मशानों के झंझावातों ने उनसे चाहे जब मोर्चा लिया, पर उनका ध्यान भंग नहीं कर सके और संत शिरोमणि जी पल पल ध्यानरत रहते आये। उनका तप तो पूर्ण सतयुगी है। कलिकाल में ऐसे तपस्वी कहीं मिल जायें विश्वास नहीं होता।
प्रवचन प्रवाह उनका विशिष्ट है, जैसे साक्षात् महामुनि महावीर अपनी परिव्राजक अवस्था में कुछ संबोधन कर रहे हैं।
वे किसी से प्रभावित नहीं होते। सेठ साहूकारों, पंडितों, नेताओं के इशारों पर अपनी योजनाएं नहीं बनाते, न परिवर्तित करते हैं। सदा समभाव धारण करते हैं। कुबेर और निर्धन, पतित और पावन सब उनकी करुणा एवं कृपा के पात्र हैं।
पोस्ट-127…शेषआगे…!!!