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#विद्याधरसे_विद्यासागर (किताब)
साहित्यकारों और कलाकारों को सदा अपनी मुस्कानों से अभिसिंचित करते हैं और उन्हें उद्देश्य की ओर सक्रिय रहे आने की प्रेरणा और वातावरण देते हैं।
वर्तमान साधु-समाज के बीच वे एकमात्र ऐसे आचार्य हैं जो कहीं भी विवादग्रस्त नहीं हैं। उनसे कई साधुओं ने लाभ पाया है। उनके दर्शनों से पतित-जन पावन होते हैं। वे किसी को बुलाते नहीं, पर उनका आमंत्रण हर हृदय में गूंजता रहता है। वे किसी को भगाते नहीं, शायद इसीलिये जो भक्त उनकी वंदना कर लौटता है तो घर आकर उसे आभास होता है कि मन तो वहीं उनके चरणों में छोड़ आया है।
वर्तमान में देश में उनका संघ सबसे बड़ा हो गया है, १८४ पिच्छिकायें और कमण्डलु जिस डगर से होकर निकल पड़ते हैं, वहाँ के दैन्य, दमन और दकियानूसीपन शांत हो जाते हैं, महामारियाँ विदा ले जाती हैं, अनिष्ट टल जाते हैं, इष्ट मिल जाते हैं। उन्हें नमन कर कौन न अपनी आधि-व्याधि से मुक्त होना चाहेगा? काया के कष्टों से शिथिल, परेशान हुए श्रावकों, त्यागियों को वे ही तो महा-मरण का अमृत दान बतलाते हैं। सच, मरण समाधि की दीक्षा देने में और उनका सिद्धान्त निर्वाह करने कराने में वे दक्ष है। लोग विनोद में ‘समाधि-सम्राट्’ कहते हैं।
ऐसा संत हमारे पास है, कौन न अपना सिर उठाकर यह वाक्य कह गौरवान्वित होना चाहेगा। जैन समाज का वास्तविक पुण्य क्या है, वास्तविक संस्कृति और इतिहास क्या है, वास्तविक परिचय क्या है? सतयुगी संत विद्यासागर और उन जैसे कुछ अन्य दिगम्बर संत।
अंतिम पोस्ट-128