विरोधी का प्रतिकार करना ज्ञानी का कार्य नहीं है अज्ञानी विरोध करता है और अपनी ऊर्जा को नष्ट करता है , अज्ञानी जवाब देता मानव की मान कसाएं जब चरम पर होती हैं तो महाविनाश होता है विकास के साथ – साथ विनाश का रास्ता भी बनता जाता है , परमाणु बम विकास का परिचायक नहीं बल्कि महाविनाश का कारण है जो ज्ञान दुख का कारण हो वह विनाशकारी होता है , जो सुख का कारण होता है वह सच्चा ज्ञान होता है , पाप के क्षेत्र में विकसित ज्ञान निरर्थक होता है । ये विचार मुनि श्री अजीत सागर महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में वसुंधरा नगर में अभिव्यक्ति किए । मुनिश्री ने अपने मंगल प्रवचन में आगे कहा कि पारसनाथ भगवान की महिमा अपरंपार हैं उनके गुणों का चिंतन करने से अपने आत्मिक गुणों का विकास होता जाता है , विपरीत समय में भी भगवान का चिंतन करने से संकट अपने आप टलते जाते क्योंकि पारसनाथ भगवान ने संघर्षों का सामना समता भाव के साथ किया , इसीलिए पारसनाथ भगवान हमारे आदर्श हैं संकटों को टलने के लिए प्रभु की उपासना नहीं की जाती बल्कि सच्चे भक्तों को यह विश्वास होता है कि प्रभु भक्ति करने से उसके संकट स्वयं अपने आप टल जाएंगे , इसे निष्काम भक्ति कहते हैं , निष्काम भक्ति कर्म निर्जरा का सबसे बड़ा कारण है पारसनाथ भगवान पर कर्मठ उपसर्ग करता रहा किंतु उन्होंने प्रतिकार नहीं किया क्योंकि विरोध करने पर उनकी ऊर्जा मूल लक्ष्य से भटक जाति और मोक्ष का द्वार नहीं खुल पाता ।
