वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का अतिशय क्षेत्र छोटा महावीर जी कागदी पूरा में भव्य प्रवेश
कागदीपुरा धार
प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवती आचार्य श्री शांतिसागर जी दक्षिण की मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टा धीश वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का संघ सहित मंगल विहार कर्नाटक से राजस्थान की और पद विहार करते हुए छोटा महावीर जी अतिशय क्षेत्र10 मुनिराज 15 आर्यिका माताजी तथा दो क्षुल्लको सहित 28 साधुओ का प्रवेश हुआ।
जानकारी देते हुए श्री विनय छाबड़ा तथा श्री आशीष जैन ने बताया कि नगर आगमन पर अजित छाबड़ा बगड़ी, प्रकाश गंगवाल मांडव, सुरेश,मुकेश दिलीप, संजय, अजय, संजय सेठी, पवन छाबड़ा आदि समाज जन ने बाजे गाजे के साथ नगर की गरिमा अनुरूप आगवानी की। आचार्य श्री का चरण प्रक्षालन कर मंगल आरती की ।
जिनालय में पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने संघ सहित जैन मंदिर में 1008 श्री महावीर स्वामी की अतिशय कारी भगवान के दर्शन किये।
आदिवासी समाज ने की आगवानी
वही ग्राम की आदिवासी समाज ने बहुत ही श्रद्धा के साथ आचार्य श्री संघ की आगवानी की। उत्साह इतना था की धर धर पर रगोली बनाई गई। घर घर चरण प्रक्षालन कर आरती उतारी गई ।
विवरण
श्री राजेश पंचोलिया ने बताया की
आचार्य श्री खरगोन जिले सनावद के है मध्यप्रदेशखरगोन जिले के नगर सनावद में 18सितम्बर 1950 को
श्रीमती मनोरमा देवी श्री कमल चंद जी पंचोलिया के कोख से श्री यशवंत जी का जन्म हुआ।
आपने मात्र 19 वर्ष की उम्र में 24 फरवरी 1969 को तृतीय पट्टा धीश आचार्य श्री धर्म सागर जी से सीधे मुनि दीक्षा लेकर नाम श्री वर्द्धमान सागर हुआ ।
72 वर्षीय आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी 54 वर्ष से
दीक्षित होकर 33 वर्ष से आचार्य है।
आपके द्वारा अभी तक 89 मुनि आर्यिका क्षुल्लक क्षुल्लिका दीक्षाएं दी गई है।
पूज्य गुरुदेव के आगमन से कागदीपुरा, नालछा, बगड़ी, धार जैन समाज बहुत ही उत्साहित एवम आनंदित है।
कि उन्हें भारत वर्ष के महानतम आचार्य संघ का सानिध्य मिला है।
मंदिर का इतिहास
मंदिर परिसर में लगे विवरण अनुसार 20 अक्टूम्बर 2010 को आदिवासी समाज के दो बालक श्री जितेंद्र एवम श्री विक्रम को मंदिर परिसर छतरी के नीचे पीली मिट्टी की खुदाई करते समय 1008 श्री महावीर स्वामी की श्याम वर्ण की 4 फ़ीट की खड्गासन प्रतिमा तथा अन्य भगवान की प्रतिमाएं प्राप्त हुई।

अतिशय
प्रतिमाओं का मकान से निकालने के बाद 25 व्यक्तियों ने अन्य बेदी पर श्री जी को विराजित करने को उठाना चाहा, किंतु प्रतिमा जी टस से मस नही हुई। तब विक्रम जितेंद्र एवम अन्य बालको द्वारा प्रतिमा आसानी से उठाकर मंदिर में विराजमान की।
राजेश पंचोलिया इंदौर वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार से प्राप्त जानकारी के साथ
अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी