अहिंसा धर्म पालन के लिए हस्तकला हथकरघा की प्रेरणा दी आचार्य श्री ने–आदर्शमति माताजी
अशोकनगर–
एक दार्शनिक एक गांव में आता है, वह गांव के लोगों के बीच है, वह अपने वैंग से सुयोग्य फल निकालता है। और गांव के लोगों से कहता है कि क्या गांव के लोगों के पास सेव फल को परोपकार में लगाने की कोई प्रक्रिया कोई योजना कोई विधि है? गांव के लोग संस्कृति से फले और फूले रहते हैं, संस्कार में जीवन जीते हैं। शहरों के जीवन, और गांव के जीवन में बहुत फर्क होता है। तो सभी ने सिर हिला कर कहा कोई प्रक्रिया, कोई योजना नहीं है। उस दार्शनिक ने अपने वेग से चाकू निकाला और उस फल के टुकड़े कर दिए। और उसने गांव के लोगों से कहा कि इसको तो तरो ताज़ा नहीं कर सकते। इसका तो हम कुछ नहीं कर सकते। लेकिन इसके अंदर के बीजों को उचित भूमि में बो देंगे, तो वहुत सारे सेवफल के पेड़ उग आयेंगे।
उक्त उद्गार सुभाष गंज में धर्म सभा को संबोधित करते हुए आर्यिकारत्न श्रीआदर्श मति माताजी ने कहे।
भक्ति भाव से की आचार्य श्री की महा अर्चना
रविवार को शहर भर के बच्चो द्वारा संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की महापूजा युवा वर्ग के संरक्षण शैलेन्द्र श्रगार के मधुर भजनों व चुनिंदा बच्चो के, व पाठशाला की बहनों की भक्ति मय प्रस्तुति के साथ की गई। जहां स्थापना गंज मन्दिर की बहनों ने की। वहीं जल समर्पित करने का सौभाग्य गांव मन्दिर के बच्चो वह बहनों को मिला। चंदन शान्ति नगर के बच्चो को,अक्षत बहनों को, पुष्प पारसनाथ मन्दिर पाठशाला के वच्चो व बहनों द्वारा हुआ। दीप आदि नाथ जिनालय के बच्चो व बहनों द्वारा, धूप बगीचा मन्दिर के बच्चो व बहनों द्वारा, श्री फल समाज द्वारा समर्पित किए गए ।
महापूजा हेतु सुन्दर सुन्दर थाल बच्चो द्वारा सजाकर लाए गए। वविभिन्न परिधानों में बच्चे आये। साथ ही विभिन्न पाठशालाओं की बहने भी ड्रेस कोड में सम्मलित हुई।
जन्म से नहीं कर्म से महान बनते हैं
माताजी ने कहा कि इन पेड़ों से बहुत सारे पुनः बीज मिल जायेगे, लेकिन जब दार्शनिक ने प्रयोजन भूत बात कहीं कि ये वो भारत है, जिस भारत भूमि पर तीर्थंकर भगवान, श्री राम, कृष्ण, बलभद्र जैसे महापुरुष हुए हैं। जन्म से कोई महान नहीं होता, कर्म से महान होता है। वे ऐसे कर्म करते है कि भगवतता को प्रकट कर लेते हैं। इस मिट्टी ने अनेक महा पुरुष बनाये है। आज विचारणीय बात है कि, हम अपनी संस्कृति और संस्कारों को बचाने पुष्पित पल्लवित करने के लिए क्या कर रहें हैं? आज हमारे सामने देश का भविष्य बच्चे बैठे हुये है। इनके लिए भावी पीढ़ी में संस्कारों का विकास हो। इस ओर कदम बढ़ाने का समय आ गया है।
हमें वो भारत चाहिए जहाँ समृद्धि हो
उन्होंने आगे कहा कि हम उस भारत को चाहते हैं, जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हुए, नारायण श्री कृष्ण हुए, वीर महावीर हुए, ना हमें महाभारत चाहिए, ना हमें नवभारत चाहिए, हमें तो वह भारत चाहिए जो स्वर्णिम युग के अतीत जैसा हो। जैसे हर घर में सुख समृद्धि हो। सोने चांदी के बर्तन हो। जहां कोई चोर नहीं होता हो। रामराज जैसा भारत चाहिए। जहां अशांति का वातावरण नहीं होता। लोग शांति से रहते थे, ऐसे भारत की स्थापना के लिए आचार्य भगवंत विद्यासाग़र महाराज ने हथकरघा प्रतिभा स्थली की स्थापना जैसे संस्कार संस्थाओं की स्थापना कराकर संस्कारों का शंखनाद किया है।हम जानते हैं आपके पास आलोचनाओं के अंबार तो आते हैं। क्या आपके पास वह बातें आती है जो 99% सही होती है ।
आज प्रतिभा स्थली के माध्यम से नन्हे -मुन्ने बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण करने का गौरवशाली कार्य इन बहनों द्वारा किया जा रहा है। संस्कारों का कार्य कर्मचारी से नहीं होता, प्रतिभास्थली मे मां बन कर यह बहनें बच्चों को संस्कारित करती है। उनका ख्याल रखती है यहां संस्कारों का शंखनाद अनवरत चलता रहें, इस हेतु इन बहनों को प्रोत्साहन की जरूरत है।
संकलित अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी