सुखों का करें त्याग और सत्य करें धारण आर्यिका विज्ञाश्री माताजी
नगर फोर्ट

प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ का नगरफोर्ट में भव्य शोभायात्रा के साथ मंगल प्रवेश हुआ। समाज के मिडिया प्रवक्ता राजाबाबू गोधा ने अवगत कराया कि श्रावकों के द्वारा हर घर के बाहर चौक पूर कर रंगोलियाँ बनाई गई थी हर्षोल्लास से नगर का दृश्य बड़ा ही मनोरम लग रहा था। नगर प्रवेश के बाद मंदिर जी में गुरु मां के मुखारविंद से अभिषेक शांतिधारा हुई कार्यक्रम में नैनवां, बूंदी आदि स्थानों से पधारे हुए अतिथियों का सम्मान किया गया। तत्पश्चात पूज्य गुरु माँ के प्रवचन हुए । माताजी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि – आज के प्राणी को धर्म से कोई प्रयोजन नहीं है सभी अपने – अपने स्वार्थ पूर्ति में लगे हुए हैं। जिसके लिए व्यक्ति सत्य से पीछे हटकर झूट का बेहिसाब सहारा लेकर बड़े से बड़े अपराधों को अंजाम देने से नहीं चूक रहा। खलील जिब्रान से किसी ने पूछा, ‘आज दानवता, हिंसा और अनैतिकता का बोलबाला क्यों हो रहा है? जिब्रान ने उसे बताया, ‘ईश्वर ने जब आदमी को दुनिया में भेजा, तो उसके दोनों हाथों में एक-एक घड़ा थमा दिया था। परमात्मा ने उससे कहा, एक घड़े में सत्य भरा है, जिसका पालन कल्याणकारी होगा। दूसरे घड़े में सुख है, जो विषय-वासना की चाह पैदा करता है। तुम जगत् में जा रहे हो, जहाँ शैतान (अज्ञान) व माया (अविद्या) का राज्य है। प्राण देकर भी सत्य की रक्षा करना, उसे ज्यों-का-त्यों सुरक्षित रखना। सुख की कामना सीमित रखना। यह मत भूलना कि तुम्हारे दाहिने हाथ में सत्य का घड़ा है और बाएँ हाथ में सुख का।
’इन्सान दोनों घड़े लेकर चला,रास्ते में उसे थकावट महसूस हुई। वह पेड़ की छाया में बैठा, तो नींद आ गई शैतान ने चुपचाप परमात्मा की हिदायत सुन ली थी, वह भी इन्सान का पीछा कर रहा था। इन्सान को सोता देख उसने चुपचाप दाएँ हाथ का घड़ा बाएँ हाथ में और बाएँ हाथ का घड़ा दाएँ हाथ में रख दिया और गायब हो गया। देता है, व्यक्ति भोग-विलास व अन्य दुर्व्यसनों में फँसकर अपना और दूसरों का जीवन कष्टमय बनाने में लगा रहता है। अतः हमें जीवन में सत्य को धारण कर और विज्ञान के भौतिक सुख – सुविधाओं के साधनों का त्याग करना चाहिए । तभी हमारा जीवन सुखमय बन सकता है।

संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी