जैन मुनि प्रभाकर सागर का प्रथम मुनि दीक्षा दिवस मनाया गया

JAIN SANT NEWS कुण्डलपुर (नालंदा)

जैन मुनि प्रभाकर सागर का प्रथम मुनि दीक्षा दिवस मनाया गया

कुण्डलपुर (नालंदा): दिगम्बर जैन आचार्य श्री 108 प्रमुख सागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री प्रभाकर सागर जी महाराज का प्रथम मुनि दीक्षा दिवस मंगलवार को कुण्डलपुर जैन तीर्थ पर गुरुभक्तों ने श्रद्धापूर्वक मनाया। इस अवसर पर जैन श्रद्धालुओं ने सर्वप्रथम तीर्थंकर महावीर स्वामी का पंचामृत अभिषेक, महाशांतिधारा और विशेष पूजा-अर्चना की। तत्पश्चात भक्तों ने गुरु पूजा कर मुनि श्री के चरणों में श्रद्धा-भक्ति के साथ अर्घ्य समर्पित किया। कार्यक्रम में मुनि श्री का पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट कर मंगल आरती की गई।

गुरुभक्त प्रवीण जैन ने बताया कि युवा जैन मुनि प्रभाकर सागर जी की उम्र महज 26 वर्ष की है। जिनका जन्म उत्तरप्रदेश के इटावा में हुआ था। आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर वैराग्य मार्ग को अपनाया था। उसके बाद आचार्य प्रमुख सागर जी के सानिध्य में रहकर शिक्षा और दीक्षा ग्रहण की। संत प्रभाकर सागर महाराज इटावा के नवग्रह अहिंसा तीर्थ पर 1 वर्ष पूर्व मुनि दीक्षा को अंगीकार कर संयम पथ को अग्रसर हुए थे। आज जैन मुनि बनकर श्रमण परम्परा का निर्वाह कर मोक्ष मार्ग की ओर तप-साधना में लीन है।

वैरागी संत रत्नों के पीछे नहीं भागते, सर्वोच्च पद है दिगम्बर साधु – मुनि श्री

मुनि प्रभाकर सागर जी ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे पूज्य गुरुदेव आचार्य पुष्पदंत सागर जी और आचार्य प्रमुख सागर जी गुरुदेव ने मुझपर जो उपकार किए है। जिन्होनें हमें मोक्ष मार्ग का रास्ता दिखाया। गुरूदेव ने हमें आज ही के दिन रत्नत्रय ही नहीं बल्कि निर्गन्थ दीक्षा प्रदान की थी। वैरागी संत रत्नों के पीछे नहीं भागते बल्कि रत्नत्रय प्राप्त करने में लग जाते है। मेरे गुरु के मुझपर अनंत उपकार हैं उन्होंने मुझे दीक्षा देकर मेरा मानव जीवन सार्थक कर दिया। जीवन में सर्वोच्च पद प्राप्त करना है तो दिगंबर साधु निर्गंथ मुनि से बढ़कर कोई पद नहीं है यही परम शाश्वत पद है।

जब पराये अपना लगे तब मानों इंसानियत जन्म लिया – आचार्य प्रमुख सागर
आचार्य प्रमुख सागर जी ने प्रवचन में कहा कि सभी को अपने और अपना पसंद है, पराये कोई भी नहीं। जब पराये भी अपने लगने लगे, तब मानना कि तुम्हारे इंसानियत का जन्म हो गया है। अब तुमसे भगवान ज्यादा दूर नहीं है। यही है विश्व बंधुत्व की भावना, सदभाव प्रेम मैत्री की भावना, देवत्व-शिवत्व की भावना, बुद्धत्व- अपनत्व और मनुष्यत्व की भावना।

वहीं मंगलवार को दोपहर में जैन साधु-साध्वीयों ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय खण्डहर और पुरातात्विक नालंदा म्यूज़ियम का अवलोकन कर इतिहास से जुड़ी जानकारी ली। इसके बाद दिगम्बर जैन कुण्डलपुर तीर्थ से जैन संतों का संघ राजगृह पंचपहाड़ी तीर्थ के लिए मंगल विहार किया। इसके बाद भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी पहुंचेंगे।

— प्रवीण जैन

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