भारत में स्वतंत्रता नहीं स्वच्छंदता बढ़ गई है आचार्य कनकनंदी
भीलूड़ा
भीलूड़ा शांतिनाथ मंदिर के सभा भवन में स्वतंत्रता दिवस पर विशेष उदबोधन देते हुए आचार्य कनकनंदी गुरुदेव ने अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में बताया कि भारत पहले आर्य देश था। भारत की आध्यात्मिकता, नीति, शकुन, मनोविज्ञान, वास्तु कला, स्थापत्य कला ,शरीर विज्ञान, ध्यान, मनोविज्ञान आदि विषयों का ज्ञान अद्वितीय था ।
भारत में आर्य, मनु, तीर्थंकर आदि हुए हैं ।
राजा चंद्रगुप्त मौर्य, श्रुत केवली, भद्रबाहु के शिष्य थे।
चंद्रगुप्त मौर्य के बेटे बिंदुसार तथा बिंदुसार के बेटे अशोक थे। जो जैन अनुयाई थे बाद में बौद्ध धर्म के अनुयाई बने।
चंद्रगुप्त के समय भारत पहले अभी से 2 या 3 गुना बड़ा था। तक्षशिला नालंदा विश्वविद्यालय में 40 50 विषयों का अध्ययन कराया जाता था।
अतः विदेशी भी यहां ज्ञानार्जन करने के लिए आते थे ।
भारतीयों में ईर्ष्या भाव, संकीर्ण स्वार्थता के कारण नैतिक दृष्टि से अधिक पतन हुआ, अधिक दुर्बल बना जिसके कारण मुगलों तथा अंग्रेजों ने भारतीयों के मंदिरों के साथ-साथ उनकी संस्कृति स्वाभिमान आदि को भी ठेस पहुंचाई। अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ व्यक्ति ही भारत आए थे उस समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी भारत में दूध दही की नदिया बहती थी। इसका भावार्थ यह है कि यहां पर सभी लोग अच्छा भोजन करते थे भारत को सोने की चिड़िया कहने का अर्थ यहां के लोग आर्थिक दृष्टि से सर्व संपन्न थे। बाल विवाह, सती प्रथा ,दास प्रथा, सामाजिक कुरीतियां, धार्मिक कुरीतियां, विधवाओं को जलाना, अधिक कामुकता के कारण कम उम्र की लड़कियों से विवाह करना ,दहेज प्रथा आदि दुर्गुण बढ़ने के कारण भारत गुलाम रहा।

इन कुरीतियों के कारण भारत की संतान दुर्बल ,कायर, कमजोर हो गई। पहले स्त्री शिक्षा प्रचुर थी। अंग्रेजों के अत्याचारों के बाद घुंघट प्रथा तथा स्त्री शिक्षा में कमी हो गई। लीलावती आदि अनेक विदुषीयो ने वेद भी लिखे हैं। नॉलेज इज पावर। नॉलेज इज सुप्रीम लाइट। विदेश में पढ़ने वाले सुभाष चंद्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, बाल गंगाधर तिलक, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी आदि अनेक लोगों ने विदेश में स्वतंत्रता का स्वाद चखा जिससे उन्हें भारत को आजाद कराने की प्रेरणा मिली। नरम दल और गरम दल से भी सामाजिक क्रांति करने वाली अधिक महान है। देश की आजादी में अनेक भारतीय सपूतों का अभूतपूर्व योगदान है ।
जो अविस्मरणीय है। वर्तमान में भारत अन्य दृष्टि से संपन्न हुआ है परंतु नैतिक उन्नति अभी बाकी है। भारत में स्वतंत्रता नहीं स्वच्छंदता बढ़ गई है। जिससे भारत का विकास अवरुद्ध हो गया है। उसमें शांति सुख संगठन प्रेम आदि में कम विकास कर पा रहा है। भारत पहले विश्व गुरु रहा वह नैतिक भ्रष्टाचार, शोषण, कर्तव्य की चोरी, संकीर्ण स्वार्थपरता आदि के कारण गुलाम रहा हैं। वर्तमान में मानसिक, बौद्धिक, भाषागत ,नैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना जरूरी है। तथा स्वच्छंदता उद्दंडता को समाप्त करना आवश्यक है। केवल राष्ट्रीय चिन्ह का ही सम्मान नहीं उसके साथ-साथ उस में रहने वाले सभी लोगों की सुरक्षा, समृद्धि, सेवा ,भारत माता की सेवा है। भारत में सर्वोदय की आवश्यकता है। सर्वोदय का अर्थ समस्त आपत्तियों विपत्तियों दुख दरिद्रता नष्ट हो जाए वह सर्वोदय हैं ।
विश्व कल्याण के पहले राष्ट्र कल्याण स्व कल्याण आवश्यक है । विजय लक्ष्मी गोदावत से प्राप्त जानकारी
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी