जैन #तीर्थ #भाववन्दना #


भाग – 
आज से हमारी भाववन्दना प्रारंभ होती है, उस निर्वाण भूमि की, जहां से वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर देवाधिदेव श्री आदिनाथ भगवान जी मोक्ष प्राप्तकर सिद्धशिला पर विराजित हुए । आज से चलते हैं, इस अविस्मरणीय भाव यात्रा पर —
कैलाश पर्वत – अष्टापद निर्वाण भूमि
महान जैन तीर्थ अष्टापद कैलाश पर्वत का नाम सुनते ही हर किसी का मन वहाँ जाने को बेताब हो जाता है। भगवान आदिनाथ जी की निर्वाण भूमि अष्टापद कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है।
“अष्टापद” – जिसका अर्थ है आठ कदम अथवा आठ सीढ़ियां ।
अट्ठावयम्मि उसहो” अष्टापद में ही भगवान ऋषभदेव का निर्वाण हुआ। अष्टापद और कैलाश दोनों एकार्थी हैं।
जैन श्रद्धालुओं में सिद्धक्षेत्र यात्रा करने की एक प्रबल भावना होती है । हम सब अपने जीवन मे 20 तीर्थंकर निर्वाण भूमि श्री सम्मेद शिखर जी के दर्शन अवश्य ही कर पाते हैं,, साथ ही भगवान नेमिनाथ जी की मोक्षधरा श्री गिरनार जी, भगवान वासुपूज्य की मोक्षस्थली चम्पापुर व भगवान महावीर की मोक्ष स्थली पावापुरी जी के दर्शन अपने जीवन मे सहज कर ही लेते हैं, किंतु मूल अष्टापद कैलाश यात्रा थोड़ी कठिन होती है ।
प्रथमं जिनेन्द्र भगवान श्री आदिनाथ की मोक्ष स्थली अष्टापद कैलाश पर्वत रहस्यों से भरी एक ऐसी जगह हैं, जहां हम जा तो सकते हैं लेकिन ये यात्रा हर किसी के बस की बात नहीं है, ऐसी ही एक रोमांच और चुनौतियों से भरपूर यात्रा है आदि कैलाश पर्वत की । यहां के कण-कण में ॐ ध्वनि गूँजती रहती है और भगवान आदिनाथ के तप की साक्षी रही यह पावन भूमि और मनोरम वातावरण बहुत ही अद्वितीय अनुभव कराता है ।
इस यात्रा में चुनौतियां भी हैं, रोमांच भी है और साथ ही बेहद खूबसूरत रास्तों से गुजरने का अनुभव भी. आज से आपको आदि कैलाश यात्रा से जुड़ी हर बात बताएंगे ताकि आप अपने भावों से ही इस पावन धरा के अविरल अनुभव को महसूस कर पाएंगे । #आओजैनधर्मको_जानें
उत्तराखंड के खूबसूरत जिले पिथौरागढ़ के सीमांत इलाके धारचूला से इस यात्रा की शुरुआत होती है. सड़क के रास्ते से आप धारचूला से तवाघाट पहुंचते हैं और यहीं से आदि कैलाश के लिए ट्रैकिंग की शुरुआत हो जाती है. थोड़ा ही सफर करने के बाद आपको नेपाल के अपि पर्वत की झलक दिखने लगती है. इस यात्रा का असली रोमांच शुरू होता है उस वक्त जब आप छियालेख चोटी पर पहुंचते हैं।
आगे की यात्रा – क्रमश भाग –
संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
Sulabh Jain (Bah), Distt.. Agra
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