जैन धर्म तीर्थ यात्रा

जैन धर्म तीर्थ यात्रा यात्रा

जैन #तीर्थ #भाववन्दना #1️⃣ 1️⃣0️⃣0️⃣ भाग – 2️⃣

💎 कैलाश पर्वत – अष्टापद निर्वाण भूमि 💎

अब हमारी भाववन्दना आगे बढ़ती है ।

👉🏻 उत्तराखंड के जिले पिथौरागढ़ के सीमांत इलाके धारचूला से इस यात्रा की शुरुआत होती है। सड़क के रास्ते से आप धारचूला से तवाघाट पहुंचते हैं और यहीं से आदि कैलाश के लिए ट्रैकिंग की शुरुआत हो जाती है. थोड़ा ही सफर करने के बाद आपको नेपाल के अपि पर्वत की झलक दिखने लगती है. इस यात्रा का असली रोमांच शुरू होता है उस वक्त जब आप छियालेख चोटी पर पहुंचते हैं।

👉🏻 यहां की मनमोहक खूबसूरती हर थकान को दूर कर देती है. बर्फ से ढके पहाड़, बुग्याल और रंगों से भरे फूल मन खुश कर देते हैं. इसके बाद अगले पड़ाव के लिए गर्बियांग से गुजरते हुए आप इतिहास की झलकियों से भी रूबरू होते हैं. हालांकि कुछ साल पहले ये छोटा सा गांव लैंडस्लाइड की चपेट में आ गया था लेकिन अभी भी घरों की नक्काशी देखकर आप चौंक जाएंगे ।

👉🏻 यहां से “नाबी” (राजा नाभिराय जी के नाम पर आधारित एक स्थान जहाँ उनके चरण भी बने हैं) होते हुए यात्री गुंजी पहुंचते हैं. इसके बाद कालापानी नदी के रास्ते यात्री गुजरते हैं और इस दौरान नेपाल के अपि पर्वत को देख मन खुश हो जाता है. जिसके बाद यात्री कुंटी यांक्ति पहुंचते हैं. इस जगह का नाम पांडवों की मां कुंती के नाम पर रखा गया है।

👉🏻 मान्यता है कि अज्ञात वास के दौरान पांडव यहां रुके थे । बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बसा ये गांव बेहद खूबसूरत है. करीब चार दिनों की यात्रा करने के बाद जब यात्री छह हजार मीटर की ऊंचाई पर मौजूद आदि कैलाश पर्वत पर पहुंचते हैं तो इसका सम्मोहन हर किसी पर होता ही है । आदि कैलाश के आधार पर स्थित धोती पार्वती झील आपको अलौकिक अनुभव में ले जाती है।

👉🏻 कैसे और कब जाएं ? – उत्तराखंड में देहरादून या फिर पंतनगर तक आप फ्लाइट या ट्रेन के रास्ते जा सकते हैं. इसके बाद पिथौरागढ़ के धारचूला तक आपको पूरा रास्ता सड़क मार्ग से ही तय करना होगा. वहां से ट्रैकिंग की शुरुआत हो जाती है. सर्दियों और बरसात के मौसम में ये यात्रा संभव नहीं होती. ऐसे में गर्मियों के मौसम में जून से सितंबर तक यात्रा का सबसे उचित समय रहता है।

💎 अष्टापद’ नाम की सार्थकता 💎

यह पर्वत-शिखर आठ सीढ़ियों जैसी आकृति का होने से इसकी अष्ट-पद अर्थात् आठ कदम रखकर चढ़ा जाने वाला पर्वत।

जैसा कि हम जानते ही है, कि श्री आदिनाथ प्रभु जी की पाँच सौ धनुष (दो हजार हाथ) की काया थी। अतः उनके कदम का प्रमाण भी उसी के अनुरूप रहा होना स्वाभाविक है। तो अष्टापद-शिखर पर जिस आकार की प्राकृतिक-संरचना वाली विशालकाय आठ सीढ़ियाँ दिखाई हैं, वे उनके आठ कदम चढ़ने के अनुरूप ही रहीं होंगीं– यह स्पष्ट प्रतीत होता है।

इसके शिरोभाग पर उभरी हुई विशाल चट्टान से निर्मित प्राकृतिक-संरचना वाले चरण-चिह्न जैसी आकृति इसके शिखर पर प्रभु आदिनाथ के चरण-चिह्न जैसी परिकल्पना को बल देती हुई प्रतीत होती है। इसका अनुभव आपको यही आकर करना होगा, पर आप यह तथ्य नोट अवश्य कर लीजिए ।

यहाँ यह ध्यातव्य है कि इसके ऊपरी शिखर पर जो उभरी हुई चरण-चिह्न जैसी आकृति है, उसकी ठीक सामने, किंतु पर्वत के पिछले पार्श्व में कैलाश-शिखर स्थित है, जिसकी ओर अभिमुख होकर आदिनाथ प्रभु ने योगनिरोध किया था।

ऋग्वेद में कहा है ।
ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितानां चतुर्विशति तीर्थंकराणाम् ।
ऋषभादिवर्द्धमानान्तानां सिद्धानां शरणं प्रपद्ये ।

अर्थ – तीन लोक में प्रतिष्ठित आदि श्री ऋषभदेव से लेकर श्री वर्द्धमान स्वामी तक चौबीस तीर्थंकर हैं। उन सिद्धों की शरण को प्राप्त होता हूँ। #आओजैनधर्मको_जानें

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आगे की यात्रा में जानते हैं, अष्टापद कैलाश पर बने हुए, विशालकाय मंगल कलशों के बारे में – क्रमश भाग – 3️⃣

संकलनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
Sulabh Jain (Bah), Distt.. Agra


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