इंदौर। क्षमावाणी शब्दों से नहीं भावों से होना चाहिए और क्षमा मांगने और करने का भाव एक दिन नहीं, पूरे 365 दिन होना चाहिए एवं एक इंद्रिय, जलकायिक, वायु कायिक, वनस्पतिकायिक और अग्निकायिक जीवों से भी क्षमा मांगना चाहिए क्योंकि आज व्यक्ति इंद्रिय सुख के लिए इन सभी जीवों को बहुत कष्ट दे रहा है और क्रोध कषाय, मान कषाय, लोभ कषाय एवं चंद सिक्कों और 4 फुट जमीन के पीछे भी अपने परिचितों, सगे संबंधियों और घर-बाहर के लोगों से भी विवाद एवं कोर्ट कचहरी कर रहा है। ऐसे लोगों से यही कहना है कि कम खाना, गम खाना, नम जाना और कोर्ट कचहरी कभी न जाना और बैर भाव को प्रेम प्रीति और क्षमा भाव से सुलझाना। यह बात मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने सोमवार को समोसरण मंदिर कंचन बाग में क्षमावाणी पर्व के उपलक्ष्य में कही। उन्होंने कहा कि विवाद होने पर विवाद और विषय को न बढ़ाएं एवं परस्पर के प्रेम प्रीति को बैर विवाद से खत्म न करते हुए बैर, विरोध, विवाद को संकलेषता रहित समता एवं नम्रता भाव से क्षमा भाव के साथ समाप्त करने का प्रयास करें। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो तुम इंसान नहीं, इंसान के वेश में शैतान ही हो। वर्तमान परिपेक्ष्य में क्षमावाणी का यही संदेश है कि जीवन में सभी विवादों को विराम दो और इग्नोराए नमः बोलकर क्षमावाणी पर्व को सार्थकता प्रदान करो। इस अवसर पर श्री शांतिनाथ भगवान के कलशाभिषेक के पश्चात सभा में उपस्थित सभी लोगों ने परस्पर में एक दूसरे से क्षमा मांगी।