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भाग –
कैलाश पर्वत – अष्टापद निर्वाण भूमि
जय जिनेन्द्र ।।
भगवान आदिनाथ जी की मूल मोक्षस्थली अष्टापद कैलाश सिद्ध क्षेत्र यात्रा के चौथी भाग की भाववन्दना में आज जानते हैं, कैलाश अष्टापद पर, चक्रवर्ती भरत द्वारा बनवाये गए भव्य जिनालयों के बारे में :–
कैलाशशिखरे रम्ये यथा भरतचक्रिणा ।स्थापिताः प्रतिमा वर्णया जिनायतनपंवितपु ।।तथा सूर्य प्रमेणापि—
हरिषेण कथाकोष ५६/५
जिस प्रकार मनोहर कैलाश शिखर पर भरत चक्रवर्ती ने जिनालयों की पंक्ति में भिन्न वर्ण वाली प्रतिमाएं स्थापित की थी, उसी प्रकार सूर्यप्रभ नरेश ने मलयागिरि पर स्थापित की ।
भरत चक्रवर्ती ने चौबीस तीर्थंकरों की जो रत्न प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थी, उनका अस्तित्व कब तक रहा यह तो स्पष्ट रूप से नही कहा जा सकता, किंतु इन मंदिरों व प्रतिमाओं का अस्तित्व कई सहस शताब्दियों तक रहा । इस प्रकार के कई उल्लेख अनेक शास्त्रों से प्राप्त होते है ।
उत्तरपुराण में पृष्ठ १० पर आचार्य श्री गुणभद्र ने सगर चक्रवर्ती द्वारा अपने पुत्रों से कैलाशपर्वत के चारों ओर खाई खोदने का वर्णन करते हुए कहा है-
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