जैन धर्म तीर्थ यात्रा

जैन धर्म तीर्थ यात्रा यात्रा

#जैन #तीर्थ #भाववन्दना #

1️⃣0️⃣0️⃣ भाग – 4️⃣

💎 कैलाश पर्वत – अष्टापद निर्वाण भूमि 💎

जय जिनेन्द्र ।।

भगवान आदिनाथ जी की मूल मोक्षस्थली अष्टापद कैलाश सिद्ध क्षेत्र यात्रा के चौथी भाग की भाववन्दना में आज जानते हैं, कैलाश अष्टापद पर, चक्रवर्ती भरत द्वारा बनवाये गए भव्य जिनालयों के बारे में :–

⚜️ कैलाशशिखरे रम्ये यथा भरतचक्रिणा ।स्थापिताः प्रतिमा वर्णया जिनायतनपंवितपु ।।तथा सूर्य प्रमेणापि—

हरिषेण कथाकोष ५६/५ ⚜️

👉🏻 जिस प्रकार मनोहर कैलाश शिखर पर भरत चक्रवर्ती ने जिनालयों की पंक्ति में भिन्न वर्ण वाली प्रतिमाएं स्थापित की थी, उसी प्रकार सूर्यप्रभ नरेश ने मलयागिरि पर स्थापित की ।

👉🏻 भरत चक्रवर्ती ने चौबीस तीर्थंकरों की जो रत्न प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की थी, उनका अस्तित्व कब तक रहा यह तो स्पष्ट रूप से नही कहा जा सकता, किंतु इन मंदिरों व प्रतिमाओं का अस्तित्व कई सहस शताब्दियों तक रहा । इस प्रकार के कई उल्लेख अनेक शास्त्रों से प्राप्त होते है ।

👉🏻 उत्तरपुराण में पृष्ठ १० पर आचार्य श्री गुणभद्र ने सगर चक्रवर्ती द्वारा अपने पुत्रों से कैलाशपर्वत के चारों ओर खाई खोदने का वर्णन करते हुए कहा है-

👉🏻 द्वितीय चक्रवर्ती सगर के साठ हजार पुत्रों ने जब अपने पिता से कुछ कार्य करने की आज्ञा मांगी तो विचार कर चक्रवर्ती बोले –

⚜️ राज्ञाप्याज्ञापिता यूयं कैलासे भरतेशिना। गृहा: कृता महारत्नैश्चतुर्विंशतिरर्हताम् ।।१०७।।

⚜️⚜️ तेषां गङ्गां प्रकुर्वीध्वं परिखां परितो गिरिम्। इति तेऽपि तथा कुर्वन् दण्डरत्नेन सत्वरम् ।।१०८।।

⚜️अर्थात् राजा सगर ने अपने पुत्रों द्वारा कोई कार्य मांगने पर सोचा कि अभी धर्म का एक कार्य बाकी है। उन्होंने हर्षित होकर आज्ञा दी कि ‘‘भरत चक्रवर्ती ने कैलाशपर्वत पर महारत्नों से अरहन्त देव के चौबीस मंदिर बनवाएँ हैं, तुम लोग उस पर्वत के चारोें ओर गङ्गा नदी को उन मंदिरों की परिखा बना दो।’’

👉🏻 उन राजपुत्रों ने भी पिता की आज्ञानुसार दण्डरत्न से वह काम शीघ्र ही कर दिया। आगे के भाग में जानेंगे कि करोड़ो वर्ष बाद राजा दशरथ ने अष्टापद जिनालयों को जीर्णोद्धार कराया ,,

(पद्मपुराण के आधार से)

#आओ_जैनधर्म_को_जानें क्रमश भाग – 5️⃣संकलनकर्तासुलभ जैन (बाह)Sulabh Jain (Bah), Distt.. Agra

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उत्तरपुराण में पृष्ठ १० पर आचार्य श्री गुणभद्र ने सगर चक्रवर्ती द्वारा अपने पुत्रों से कैलाशपर्वत के चारों ओर खाई खोदने का वर्णन –
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