चितरी नगर की गौरव आर्यिका सुनिधिमति माताजी के अवतरण दिवस पर भाव भीना नमन श्री मधोक जैन चितरी की कलम से
राजस्थान प्रांत के जनजाति बहुल डुंगरपर जिले के चितरी नगरी में देव शास्त्र गुरु भक्त शाह मणिलाल जसराज परिवार में दिनांक 12 ऑक्टोम्बर सन 1980 में खुशियों की बहार आ गयी जब उनके बड़े बेटे शाह पवन की धर्मपत्नी श्रीमती हंसा देवी की कोख से तीसरी सन्तति के रूप में कन्या रत्न का जन्म हुआ*जिसका नाम रखा रागिनी व बचपन से मात-पिता व नानी सुरजदेवी के धर्म संस्कार पनप रहे थेबिटिया रागिनी का ननिहाल भी चितरी ही था रागिनी के बड़ी बहन चेलना,बड़े भैया भूपेश व छोटे भाई मधोक के रूप में वे कुल चार भाई बहन थे वही सखियों के रूप में सन्ध्या दीदी व अलका दीदी प्रमुख थे जो आज बाल ब्रह्मचारिणी के रूप में धर्म मार्ग पर अग्रसर है।
आज से तीस वर्ष पूर्व जब युगश्रेष्ठ आचार्य शिरोमणि श्री सन्मतिसागर जी महायतिराज का नगर चितरी में आगमन हुआ तब जब उनके घर पर आहार हुआ उस समय जहा आचार्य भगवन्त ने खड़े होकर आहार चर्या की वहाँ स्वतः केसरी चरण चिन्ह खिल उठे। ऐसा उनके घर पर दो बार हुआ। और ये चरण चिन्ह आज भी यथावत है। और मानो ये चरण चिन्ह ये संकेत दे रहै थे कि इसी घर का जन्मा कोई भव्यात्मा संयम पथ पर अग्रसर होगा।
आपको बता दे क्रिकेट व टीवी सीरियलो में मस्त रहते हुए भी पढाई में सबसे अव्वल रहने वाली रागिनी पर सन 1996 में अपने पिता श्री पवन जैन का मात्र 39 वर्ष की अल्प वय में स्वर्गवास हो जाने से संसार की असारता का गहरा बोध हुआ। और जब सन 1998 में आचार्य श्री गुप्तिनन्दी जी व गणिनी आर्यिका राज श्री माताजी का वर्षायोग हुआ तब रागिनी,अलका,सन्ध्या व बालक कपिल आदि पर संयम संस्कारो का गहरा प्रभाव पड़ा
इन्ही संस्कारो को विविध भाषाओ के ज्ञाता मुनि श्री मनोज्ञसागर जी ने सन 2000- 2001 के चितरी शीतकालीन प्रवास में श्रेष्ठ रूप दिया और 14 जनवरी 2001 मकर संक्रांति के दिन चारो भव्यतामाओ ने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया
अपनी लौकिक शिक्षा में भी सफलता से आपको शिक्षिका के रुप मे राजकीय सर्विस में भी अवसर आया लेकिन ब्रह्मचारिणी रागिनी दीदी ने इस अवसर को ठुकरा कर गणिनी आर्यिका राज श्री माता जी जब अस्वस्थ हुए तो उनकी सेवा में सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो गयी व पुज्य माताजी की समाधि तक पूर्ण रुप से सेवा में तत्पर रही। नगर के जिन चार भव्यात्माओ ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया उनमे से बालक कपिल आचार्य श्री गुप्तिनन्दी जी से मुनि दीक्षा लेकर मुनि श्री चन्द्रगुप्त जी के नाम से जग विख्यात है।
वही आगमकोविद-शास्त्रार्थ धुरन्धर,विद्यावाचस्पति आचार्य श्री सुविधिसागर जी गुरुदेब का वागड में प्रवास हुआ तब ब्रह्म.रागिनी ने संयम पथ पर अग्रसर होने का दृढ़ निश्चय कर लिया महान शुभ अवसर की जिस नगर में जन्म हुआ उसी चितरी नगरी में 2 मार्च सन 2006 को आचार्य श्री सुविधिसागर जी गुरुदेब द्वारा आपको आर्यिका दीक्षा दी गयी और नाम पाया आर्यिका 105 श्री सुनिधिमति माताजी
इन्होंने आचार्य श्री सुविधिसागर जी गुरुदेव से दीक्षा के कुछ वर्ष पश्चात गुरु आज्ञा से स्वाध्याय तपस्वी वैज्ञानिकधर्माचार्य श्री कनकनन्दी जी गुरूराज से भी ज्ञानार्जन किया।
वर्तमान में आप गंधवानी मध्यप्रदेश में विद्यमान है आप पर वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरूराज,आचार्य श्री सुविधिसागर जी,आचार्य श्री वैराग्य नंदी जी व मुनि श्री आज्ञा सागर जी सहित समस्त गुरु भगवंतो का शुभाशीष वरदहस्त है।
इनका अल्प प्रवास रामगंजमडी में वर्ष 2009 में रहा जब आचार्य 108 सुविधिसागर जी महाराज का रामगंजमडी नगर आगमन हुआ था।
परमपूज्या आर्यिका 105 श्री सुनिधिमति माताजी के 42 वे अवतरण दिवस पर कोटिशः वन्दामि
संकलित अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी