शरीर को आत्मा से भिन्न समझने पर ही मोक्ष निर्माण प्राप्त होगा वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
श्री महावीर जी
श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र पर वात्सल्य वारीधी आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी का 53 वा वर्षायोग सम्पन्न होकर आचार्य श्री संघ सहित विराजित हैं।
आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया
जो श्रावक ,प्राणी शरीर से अविनाशी आत्मा को पृथक अनुभव नहीं करता है वह मनुष्य कठोर तप करके भी मोक्ष रूपी गुणों को प्राप्त नहीं कर सकता है। शरीर को आत्मा से भिन्न समझना होगा तभी मोक्ष की प्राप्ति होगी ।श्रावक यदि उत्कृष्ट तब भी करेगा तो भी शरीर को शरीर से आत्मा को भिन्न समझना ही होगा। यह मंगल देशना वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने धर्म सभा में समाज को संबोधित करके कहीं।
10 उपवास कर रहे हैं ऐ सी के कमरे में बैठे हैं ,टीवी देख रहे हैं ,इससे 10 उपवास का फल तो नहीं मिलेगा
आचार्य श्री ने कटाक्ष कर बताया कि श्रावक 10 उपवास कर रहे हैं ऐ सी के कमरे में बैठे हैं ,टीवी देख रहे हैं ,इससे 10 उपवास का फल तो नहीं मिलेगा वरन कर्म बंधन जरूर होगा। इसलिए अगर उपवास करते हैं तो स्वाध्याय करना चाहिए। स्वाध्याय अंतरंग तप है ,वही उपवास बहिरंग तप है ।उपवास में 12 भावनाओं का चिंतन करना चाहिए ,भूख प्यास शरीर को लगती है किंतु आत्मा को भूख नहीं लगती श्रावक को शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान जानना जरूरी है ।
प्रवचन में आचार्य श्री ने आत्मा के अनेक प्रकार पर चर्चा हुई । जिसमें एक आत्मा जीव रूप में दो आत्मा तीन आत्मा चार आत्मा के अलग-अलग नय से भेद बताए गए ।
ब्रह्मचारी गजू भैया एवम राजेश पंचोलिया ने बताया कि दोपहर को पद्मपुराण के स्वाध्याय में आचार्य श्री ने पद्म पुराण ग्रंथ की विवेचना कर बताया कि स्थूल रूप से चार महा वंश प्रसिद्ध है जिसमें इक्ष्वाकु वंश दूसरा ऋषि चंद्रवंश तीसरा विद्याधर वंश और चौथा हरिवंश है इक्ष्वाकु वंश में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव हुए हैं उनके पुत्र श्री भरत हुए हैं और उनके पुत्र अर्क कीर्ति महा प्रतापी पुत्र हुए हैं। अर्क का दूसरा नाम सूर्य है इसलिए इनके नाम पर सूर्यवंश कहलाने लगा। इस वंश में अनेक राजा पीढ़ी दर पीढ़ी उत्पन्न हुए अधिकांश ने संसार के दुखों को जानकर शाश्वत सुख के लिए राज्य छोड़कर दिगंबर जैनश्वरी दीक्षा धारण की ।
श्री ऋषभदेव की दूसरी रानी से श्री बाहुबली नामक पुत्र हुए उनसे सोम यश नाम का पुत्र हुआ सोम का दूसरा नाम चंद्रमा है इस कारण सोमवंश या चंद्र वंश भी परंपरा चली है इस परंपरा में भी अनेक राजाओं ने दिगंबर दीक्षाको धारण कर मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त की।
राजेश पंचोलिया इंदौर वात्सलय भक्त परिवार
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमडी