ધાર્મિક – पियांग चाइना ।
हिमालय की ऊंचाई पर स्थित तिब्बत लंबे समय से अपनी अनूठी भूवैज्ञानिक बाधाओं के कारण अलग रहा है। और ऊंचाई व अनोखी बनावट के कारण संसार की छत भी कहा जाता है ।
प्राचीन काल मे, तिब्बत में एरूल नगर में जैन राजा का ही राज्य था । इस नगर में मावरे जाति के जैन निवास करते थे। नगर की नदी किनारे अनेको भव्य जैन मंदिर हुआ करते थे, जहाँ जेठ वदी तेरस व चतुर्दशी को दूर-दूर के जैन यात्री वन्दना करने आते थे।
इस नदी के किनारे ही संगमरमर पत्थर का 150 गज ऊँचा सुन्दर मेरुपर्वत भी बना था । जिनाभिषेक, मेला-समारोह आदि के कारण यहाँ हर्ष का वातावरण सदैव बना रहता था । पूर्व काल मे, तिब्बत के अन्य नगर में सोहना जाति के जैनी निवास करते थे। यहाँ के जैनी तीर्थकरों की राज्य-विभूति को वन्दन-नमस्कार करते थे व प्रतिमाओं के सिर पर मुकुट बांधा करते थे । यहां की प्राचीन मान्यतानुसार जम्बूद्वीप के सुदर्शन मेरु के दो सूर्य परिभ्रमण को मानते हैं, जैसा कि त्रिलोयपन्नति में उल्लेख मिलता है ।
तिब्बत की दक्षिण दिशा में 80 कोस की दूरी पर सुन्दर वनों एवं सरोवरों से समृद्ध नगर में ब्रह्मचारी लामचीदास लगातार एक वर्ष तक रहै। यहां के लोग तीर्थकर के दीक्षा कल्याणक के पूजक हैं। यहां तिब्बत-चीन की सीमा की दक्षिणी-सीमा में हनोवर-देश में 10-10, 15-15 कोस पर जैन पन्थियों के अनेक नगर थे जिनमें अनेक जैन मंदिर थे। अभी यहां वर्तमान में जैन धर्म के यथार्थ स्वरूप से कुछ हटकर boin नामक धर्म माना जाता है, जिसकी उत्पत्ति “गंडेस पर्वत” और “मानसरोवर झील” क्षेत्रों से हुई है, किंतु जब आप इनके स्वास्तिक को देखेंगे तो आपको महान जिनशासन की अदभुत स्वरूप का अहसास होगा । यहाँ का प्राचीन ध्वज आज भी जिनशासन के 24 तीर्थकरों के वर्ण आधार पर पांच रंगों के जैन ध्वज पर ही बना हुआ है ।
पूज्य आचार्य उमास्वामी जी द्वारा लिखित श्री तत्वार्थ सूत्र जी व जिनागम के महान ग्रथों में तीन लोक का जैसा स्वरूप बताया गया है,, उसी तरह के माँड़ने तिब्बत में प्रचलित है । फ़ोटो संलग्नपंचम तीर्थंकर श्री १००८ पद्मप्रभ जी की तांबे की मूर्ति यहां शिगात्से, तिब्बत, चीन में ताशिलहुनपो मठ संग्रह में विराजमान हैं । अन्य भी कई जिन प्रतिमा तिब्बत में है,,, किंतु कॉपीराइट issue के कारण फ़ोटो नही दी जा सकती ।
तीर्थंकर भगवान के समवसरण से संबंधित कई स्थानीय चित्रकारी आज भी यहां प्रचलित है । तिब्बत में रहस्यमयी पवित्र गुफाएं अतीत और वर्तमान के बारे में कई रहस्य रखती हैं और वे अक्सर आम पर्यटकों के लिए दुर्गम होती हैं। उनमें से, पियांग गुफाएं हैं, जो तिब्बत की सबसे महत्वपूर्ण गुफाओं में से एक हैं, जो कैलाश के पवित्र पर्वत के निकट पठार के पश्चिमी भाग में स्थित हैं।
अमेरिकी पुरातत्वविद्, मार्क एल्डेंडरफर, प्रोफेसर के अनुसार, “पियांग में” अलग-अलग आकार और आकार की 1,100 से अधिक गुफाएं हैं, कुछ स्पष्ट रूप से स्थानीय निवास स्थल हैं, जबकि अन्य शायद ध्यान गुफाएं हैं, और अभी भी अन्य में अनुष्ठान वास्तुकला है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय जिन्होंने दुनिया के तीन ऊंचे पठारों-इथियोपिया, एंडीज और तिब्बत पर काम किया है। भगवान आदिनाथ को अन्य कई नामो से पूजा जाता हैं, उनकी निर्वाण स्थली के बारे में तिब्बत के सियाचुल क्षेत्र के चेंगडू शहर में अष्टापद होने की संभावना जताई है। यह दक्षिण चीन सीमा क्षेत्र में है। उपग्रह से ली गई विशेष तस्वीरों और कैलाश मानसरोवर के आसपास की जगह की स्टडी के बाद वैज्ञानिक शुरुआती तौर पर मान रहे है कि वह अष्टापद के बेहद नजदीक पहुंच चुके है। लेकिन, चूंकि यह स्थान फिलहाल चीन अधिकृत है। ऐसे में इसकी खोज के लिए वैज्ञानिक अब इसरो की मदद ले सकते है।
तिब्बत के चेंगडू में इन्हीं पर्वत शृंखला को वैज्ञानिक अष्टापद मान रहे हैं। करीब एक हजार वर्षों पूर्व जैन मुनियों ने ग्रंथों मेंं अष्टापद महातीर्थ का उल्लेख किया है, जिसे बाद में सैंकड़ों वर्षों बाद देखा नहीं गया अौर उसे लुप्त हुआ मान लिया गया। जांच कर रही वैज्ञानिकों की टीम ने बताया कि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ भगवान) ने सबसे ऊंचे पर्वत पर तपस्या कर मोक्ष की प्राप्ति की थी। ऐसा माना जाता है कि इस महातीर्थ स्थल के चारों ओर ऊर्जा संचयित है। इस पर तप और चिंतन करने पर आत्मा सिद्धक्षेत्र में चली जाती है। हालांकि वैज्ञानिक अभी इसे सिर्फ जैन ग्रंथों के आधार पर बता रहे हैं। इसकी भौतिक जांच के लिए इसरों की मदद ली जाएगी।
अब इस तिब्बत देश की यात्रा में इतना ही, अब हम अगली यात्रा में जानेंगे,,,
“चीन देश मे जैन धर्म” के बारे में——
कैसे यहां राजा ऋषभदेव के पुत्रों का राज्य रहा करता था ।
संकलन,सुलभ जैन (बाह)
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