दीक्षा दिवस विशेष

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दीक्षा दिवस विशेष

☀️विद्यागुरु गुरुकुल के प्रथम श्रमण एवं प्रथम निर्यापक श्रमण श्री समय सिंधु ऋषिराज☀️

समय अर्थात आत्मा , कई बार सोचता हूँ प्रथम शिष्य का नाम गुरुदेव ने ये ही क्यों रखा तो दूसरा प्रश्न स्वयं जन्म लेता है कि गुरुदेव ने उन्हें प्रथम शिष्य रूप में क्यों अपनाया , समाधान तो सिर्फ गुरुदेव के पास है पर मैंने जो देखा सो लिख दिया

💫गुरूकुल के प्रथम कुलदीपहे विद्या गुरु के प्रथम दीप गुरुदेव ने आपको इतना ज्ञान दीप से भर दिया कि उन्होंने अपने प्रथम शिष्य के रूप में आपको स्वीकार्य किया, 8 मार्च 1980 को श्री सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि में एक सादे ढंग से दीक्षा देकर गुरुदेव ने आपके श्रमण बनाया, तो वही ललितपुर पंचकल्याणक में प्रथम निर्यापक श्रमण पद से विभूषित किया।

💫हे अध्यात्म के मार्तण्डसंसार में साधु होना बहुत सरल है पर साधु बन पाना बहुत कठिन है। आप इस दूभर पंचम काल में अध्यात्म का जो सुधा पी रहे हो वह विरले ही हुआ करते है, आप की वाणी व्यवहार चिंतन प्रवचन हर जगह मात्र अध्यात्म ही दिखाई देता है , सहज ही लगता है भेद विज्ञान की इतनी सूक्ष्म दृष्टि आप ने पाई है इसलिए हर समय-समय से जुड़े रहते हो उसका रसास्वादन करते रहते हो इसलिए समय शिरोमणि हो।*

💫हे चर्यावान श्रमण

*अभी अभी तो देखा था कुंडलपुर महोत्सव , उसमें मोक्ष कल्याण महोत्सव के दिन आपका अलाभ उसके बाद भी भीषण गर्मी में पंडाल की विशाल जनसमूह के साथ परिक्रमा करते हुए , कितने भी अस्वस्थता जकड़े पर चर्या से समझौता कहां आप करते हो तब लगता है समय नाम को आप साकार करते हो*

💫’जो आज्ञा’ शब्द पालक

*गुरु ने कुछ कहा हो , उसके आप सहज भाव से सुन लेते हो पर उसका अक्षरशः पालन करना और संघस्थ साधुओं से करवाना आपकी विशेषता है इन 44 वर्ष के दीक्षा काल मे किसी विरले ने ही आपको गुरुदेव से वार्तालाप करते देखा होगा, मात्र ‘जो आज्ञा’ ही आप गुरु से कह देते हो।*

💫हे कुशल संघ संचालक

*गुरुदेव एक ओर इतने वृहद संघ का संचालन करते आए है और आज भी करते है पर गुरुदेव ने आपको 21 साधु वृन्दो की जिम्मेदारी दे दी उनका अनुपालन आप इतनी धीरता और वात्सल्य से करते हो तब कभी लगता है वात्सल्य अंग की परिभाषा आपको देख कर ही शोभा पाती है।*

💫आध्यात्मिक घुट्टी प्रदाता

*मैंने सुना है दीक्षा के पूर्व ओर दीक्षा के बाद गुरुदेव शिष्यों को आपके हाथ सौंप देते थे जिसके बाद आप ऐसी अध्यात्म की घुट्टी पिलाते हो जिससे साधक रत्नत्रय का पालन कर मोक्षपथ पर बढ़ता जाता है।Continue

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