दीक्षा दिवस विशेष
विद्यागुरु गुरुकुल के प्रथम श्रमण एवं प्रथम निर्यापक श्रमण श्री समय सिंधु ऋषिराज
समय अर्थात आत्मा , कई बार सोचता हूँ प्रथम शिष्य का नाम गुरुदेव ने ये ही क्यों रखा तो दूसरा प्रश्न स्वयं जन्म लेता है कि गुरुदेव ने उन्हें प्रथम शिष्य रूप में क्यों अपनाया , समाधान तो सिर्फ गुरुदेव के पास है पर मैंने जो देखा सो लिख दिया
गुरूकुल के प्रथम कुलदीपहे विद्या गुरु के प्रथम दीप गुरुदेव ने आपको इतना ज्ञान दीप से भर दिया कि उन्होंने अपने प्रथम शिष्य के रूप में आपको स्वीकार्य किया, 8 मार्च 1980 को श्री सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि में एक सादे ढंग से दीक्षा देकर गुरुदेव ने आपके श्रमण बनाया, तो वही ललितपुर पंचकल्याणक में प्रथम निर्यापक श्रमण पद से विभूषित किया।
हे अध्यात्म के मार्तण्डसंसार में साधु होना बहुत सरल है पर साधु बन पाना बहुत कठिन है। आप इस दूभर पंचम काल में अध्यात्म का जो सुधा पी रहे हो वह विरले ही हुआ करते है, आप की वाणी व्यवहार चिंतन प्रवचन हर जगह मात्र अध्यात्म ही दिखाई देता है , सहज ही लगता है भेद विज्ञान की इतनी सूक्ष्म दृष्टि आप ने पाई है इसलिए हर समय-समय से जुड़े रहते हो उसका रसास्वादन करते रहते हो इसलिए समय शिरोमणि हो।*
हे चर्यावान श्रमण
’जो आज्ञा’ शब्द पालक
हे कुशल संघ संचालक
आध्यात्मिक घुट्टी प्रदाता
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