ह्रदय के शोक दुःख को रत्नत्रय धर्म, संयम तप से दूर करेंआचार्य श्री वर्धमान सागर जी

।।स्वाध्याय परमं तपः।। प्रवचन

ह्रदय के शोक दुःख को रत्नत्रय धर्म, संयम तप से दूर करें
आचार्य श्री वर्धमान सागर जी

संसार का प्राणी लौकिक लक्ष्मी प्राप्त करने के लिए दुखी है। जबकि केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी उसके हृदय में है, अशोक का शाब्दिक अर्थ देखें शोक रहित को अशोक कहते हैं ।अशोकनगर एक सड़क के माध्यम से जाते हैं जो वास्तविक अशोक से परिपूर्ण होता है वह जीव धर्म मार्ग से चलकर रत्न त्रय धर्मों को धारण करते हैं वह मोक्ष रूपी नेशनल हाईवे से सिद्धालय पर जाते हैं ।

यह मंगल देशना श्री शांतिनाथ दिगंबर कांच मंदिर अशोक नगर में मंगल पदार्पण पर आयोजित धर्म सभा में आचार्य शिरोमणि वात्सल्य वारिघि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने प्रगट किए। ब्रह्मचारी गजू भैय्या,राजेश पंचोलिया इंदौर अनुसार आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि
संसारी दुख में है ,अनेक इच्छाओं आकुलता के कारण आप शोक में डूबे रहते हैं यह ठीक नहीं है इससे कर्म बंघ होता है और संसार परिभ्रमण में वृद्धि होती है। शोक आपके ह्रदय में है उसे रत्नत्रय धर्म से दूर करें संसार दुख में है इस कारण व्यक्ति शोकाकुल है रत्नत्रय धर्म से सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र तप, संयम का पालन कर पुण्यात्मा जीव अरिहंत सिद्ध हुए । शरीर और आत्मा का भेद समझना जरूरी है ।आत्मा में शक्ति और सामर्थ्य से शोक रहित होकर रत्नत्रय के मार्ग पर चल सिद्धालय को प्राप्त कर सकते हैं आचार्य श्री शांतिसागर सभागार में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री ने आगे बताया कि आचार्य शांतिसागर जी ने भी यही कहा डरो मत, संयम धारण करो।

इसके पूर्व 6 मई को वात्सल्य वारिघि आचार्य शिरोमणि श्री वर्धमान सागर जी का 32 साधुओं सहित सर्व ऋतु विलास से अशोक नगर उदयपुर के लिए विहार हुआ। श्री शांतिनाथ कांच मंदिर मंगल आगमन हुआ।1008 श्री शांतिनाथ भगवान की शांति धारा को सौभाग्य श्री डाया भाई हिम्मत नगर गुजरात को प्राप्त हुआ।आपकी पुत्री बाल ब्रह्मचारिणी डा उर्वशी दीदी की 1 जून को डीमापुर दीक्षा होगी।

आमंत्रित परिवारो द्वारा आचार्य श्री शांति सागर जी के चित्र का अनावरण कर दीप प्रवज्जलन श्रीपाल धर्मावत,रोशनलाल,गौरव,सुंदर लाल,अशोक एवम् मंदिर पदाधिकारियों ने किया गया।आचार्य श्री का चरण प्रक्षालन शांतिलाल,अशोक गोधा एवम् महेंद्र एवम् परिवार ने शास्त्र भेट किया।मंच संचालन कुंथू गणपतोत ने किया।

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