आज के दिन अकम्पनचार्य आदि 700 मुनिराजो का महा उपसर्ग दूर हुआ

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रक्षाबंधन का क्या इतिहास है,,
गणाचार्य श्री विरागसागर जी
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पन्ना। परम पूज्य भारत गौरव, राष्ट्रसंत, गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महामुनि राज 30 साधुओं के विशाल स संघ पावन सानिध्य में आतिशय क्षेत्र श्रेयांश गिरी मैं वात्सल्य पर्व रक्षाबंधन भारी हर्षोल्लास से मनाया गया।






















मीडिया प्रभारी भरत सेठ घुवारा ने उक्त आशय कि जानकारी देते हुए बतलाया कि प्रातः काल भगवान श्रेयांश नाथ निर्वाण कल्याणक महोत्सव दिवस के पावन अवसर पर्वत पर स्थित विशालकाय श्रेयांश नाथ भगवान के समक्ष महा मस्तकाभिषेक तथा निर्वाण लादू चढ़ाये जिसे चढ़ाने का सौभाग्य विजय इंदिरा जैन सलेहा को प्राप्त हुआ।








पूज्य गुरुवर ने अपने प्रवचनाशों मैं वात्सल्य पर्व रक्षाबंधन की महिमा बतलाते हुए कहा आज संपूर्ण भारतवर्ष में इस पर्व को भारी हर्षोल्लाह से मनाया जा रहा है आज बड़ा सौभाग्य है कि आज दो दो महान कार्य होने का शास्त्रों में उल्लेख है कि आज के दिन ही भगवान् श्रेयांश नाथ ने सब कर्मों का नाशकर मोक्ष को प्राप्त किया था तथा आज के दिन अकम्पनचार्य आदि 700 मुनि राजों के ऊपर हुआ महा उपसर्ग दूर हुआ था। बतलाते हैं जब लोगों में ईर्ष्या भाव बढ़ता है तो विद्वेष उत्पन्न होता है और फिर उद्दण्डता प्रारंभ होती है। ऐसी ईर्ष्या भाव ने ही तो बाली बलि आदि मंत्रियों की मति को भ्रष्ट कर दिया और उन्होंने संपूर्ण राग द्वेश से रहित श्रुतसागर महाराज अकम्पना चार्य आदि 700 मुनि राजों के चारों तरफ भीषण आग लगाकर उन पर भारी उपसर्ग किया
बंधुओ,,,,,
जैन मुनियों की ऐसी ही चर्या होती है कि वे किसी के द्वारा दिए कष्ट अथवा उपद्रवो का प्रतिकार नहीं करते अर्थात चाहे कोई उनके लिए अर्घ उतारे अथवा कोई उन्हें तलवारों से वार
करें किंतु सब परिस्थितियों में वे समता रखते हैं यही कारण है कि बलि आदि चार दुष्ट मंत्रियों द्वारा किए गए घर घोर उपद्रव को अकम्पना चार्य आदि 700 मुनिराज समतापूर्वक सहन करते रहे। उनके चारों तरफ अग्नि की लपटे जल रही थी, मुनियों का शरीर आज की गर्मी से झुलस रहा था किंतु धन्य है वे मुनिराज जिन्होंने कोई भी प्रतिकार नहीं किया। यह धर्म की महिमा है कि जब अत्याचार, अनीति बढ़ती है तो उसे दूर करने के लिए धर्मात्मा जन आगे बढ़ते हैं। यही हुआ अर्थात जब विष्णु कुमार मुनि ने यह बात सुनी कि धरणीधर पर्वत पर मुनियों पर उपसर्ग हो रहा है तो वे स्वयं पहुंच गए उपसर्ग को दूर करने के लिए और उन्होंने अपनी सिद्धियों के द्वारा उसे उस उपसर्ग को दूर कर 700 मुनियों की प्राण रक्षा की 7 दिन तक अग्नि की गर्म लपटो से तपे उन मुनि राजों की आज के दिन ही उपसर्ग दूर हुआ था। और आज के पावन दिवस ही यह साक्षात् वात्सल्य का उदाहरण बना कि आखिर साधर्मी के प्रति साधर्मी का कैसा वात्सल्य होना चाहिए किंतु आज की स्थिति दूसरी है आज ऐसा भी समय आ गया है कि कष्ट में पड़े लोगो को दूसरे क्या अपने ही लोग छोड़ देते हैं अच्छे समय में तो दुनिया साथ निभाती है किंतु धन्य हैं वे लोग जो बुरे वक्त में साथ निभाते हैं।