अध्यात्म सरोवर के राजहंस, श्रमण परम्परा के महासूर्य, संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज का समतापूर्वक समाधिमरण व्यवहारिक दृष्टि से तो कष्टपूर्ण है परंतु निश्चयवाद से उत्सव का क्षण है। मोक्ष की अविरल यात्रा पर बढ़ते हुए पूज्य आचार्य श्री ने आज एक पड़ाव और पार कर लिया।
गृहस्थ अवस्था से लेकर आज तक आचार्य श्री का भरपूर स्नेह और आशीर्वाद मुझे प्राप्त होता रहा है। सन 1996 में महुआ जी में आचार्य श्री ने मुझे आजीवन बाल ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान कर कृतार्थ किया और एकाएक ही बोल पड़े कि “तेरा भविष्य उज्जवल है”। आचार्य श्री के इन वाक्यों ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और विचारमंथन की गुत्थियों को सुलझाते-सुलझाते आज मैं उनकी कृपा से मुनि पद में अवस्थित हूं।
आचार्य श्री का समाधिमरण कोई साधारण घटना नहीं है, अपितु अध्यात्मिकता में रुचि रखने वाले प्रत्येक प्राणी के लिए अपूरणीय क्षति है। आचार्य श्री से जितना मिला वह हमेशा कम ही रहेगा क्योंकि वह तो ऐसे अनंत सागर थे कि जहां से जितना चाहे लेते रहो, वह खाली नहीं होगा। श्रमण परम्परा का सूर्य, शरद पूर्णिमा का चंद्रमा आज इस नश्वर काया का त्याग कर सिद्धत्व की ओर आगे बढ़ गया।
आचार्य श्री जाएंगे, यह तो पता था परंतु इतनी जल्दी जाएंगे, यह नहीं पता था। आज प्रसिद्ध गीतकार स्व. श्री रविन्द्र जैन की अमर पंक्तियां फिर याद आ गई –
उन्हें मृत्यु ने, हमें मृत्यु के समाचार ने मारा।
अंत में आचार्य श्री के चरणों में अनंत प्रणाम करते हुए शीघ्र उनके परम पद में स्थित होने की मंगल कामना तथा सदा के लिए उनकी अनंत कृपा के प्रति कृतज्ञता के साथ सादर नमन…