भाग दस : मैं रावण… मेरा अंतिम संवाद! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग दस पिछले नौ दिनों में मैंने आपको मेरे जीवन के शुभ-अशुभ से मिले परिणामों को बताया। कर्मों की गति निराली है- कब ज्ञानी अज्ञानी बन जाए और कब अज्ञानी, ज्ञानी हो जाए… कोई नहीं जानता। आज आपसे मेरी आखरी वार्ता… कुछ भावुक है तो कुछ उपदेशात्मक। आज मैं आपसे अपने […]

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भाग नौ : मैं रावण…मेरा पछतावा मेरी अच्छाई का प्रमाण! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग नौ मैंने सीता का हरण तो किया, पर उसके साथ भोग नहीं किया, क्योंकि वह मुझे नहीं चाहती थी। वह मेरे अपने महल में थी तो भी मैंने जबरन उस पर अधिकार जमाना नहीं चाहा। मेरी पत्नी पटरानी मंदोदरी ने भी सीता को समझाया था कि तुम रावण को स्वीकार […]

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भाग आठ : मैं रावण… कुलधर्मी, सच्चा क्षमाधर्मी! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग आठ मैं रावण… मेरी दिग्विजय का लक्ष्य था- अपनी वंश परम्परा की राज्य नगरी लंका को पुन: प्राप्त करना। दिग्विजय मात्र शक्ति बढ़ाकर राजा इंद्र पर विजय प्राप्त करने के लिए थी, ना कि धनवृद्धि के लिए। आपको तो पहले ही बताया, राजा इंद्र ने ही लंका पर अधिपत्य स्थापित […]

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भाग सात : मैं रावण… दानी, अहिंसक और धर्म संरक्षक! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

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भाग छः : मैं रावण… एक सच्चा प्रभु भक्त! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग छः मैं रावण…जिसे तुम जलाने के लिए उत्सव मनाते हो, क्या उसके भक्त स्वरूप को जानते हो? शायद जानते होते तो मेरा पुतला जलाने के बजाय अपने मन में भक्ति का दीप जलाते। मेरी जिनेन्द्र भक्ति सदा सच्ची थी, तभी तो मैं तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध को प्राप्त कर सका। […]

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भाग पाँच : मैं…मुनिभक्त रावण! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग पाँच मैं और मेरा परिवार मुनिभक्त था। हम सदा मुनिसेवा और उनके उपदेशों को ग्रहणकर नियम पालन किया करते थे। मैं अभिमानी भी नहीं था। जब कभी मुझसे अशुभ कर्म के उदय के कारण कोई अशुभ कार्य हुआ तो उसका मैंने प्रायश्चित भी किया। मेरे जीवन में अमिट छाप छोड़ […]

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भाग चार : मैं मातृ-पितृ भक्त था और दृढ़ निश्चयी भी! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग चार विद्याएं और सिद्धियाँ प्राप्त करने को की तपस्या मेरे व्यक्तित्व का एक और अच्छा पहलू था। मैं माता-पिता का सच्चा भक्त था। उनकी आज्ञा का पालन सदा करता था और जो जीवन में ठान लेता, उसे करके ही दम लेता था यानि दृढ़ संकल्पित था। मां बताया करती थीं […]

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भाग तीन : मैं सात्विक था… तामसिक नहीं! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण @ दस : भाग तीन नीति से दिग्विजय हुआ, कभी परस्त्री गमन नहीं स्वीकारा मैं सदा सात्विक विचारों वाला, धर्म और नीति का पालन करने वाला…पर विपरीत कर्मों की गति से मति बिगड़ी और एक ऐसी गलती कर बैठा जिसके कारण आज नरक भोग रहा हूं। आपको आश्चर्य होगा कि मैंने कभी मुझ पर […]

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भाग दो : मैं राक्षस नहीं… राक्षस वंश का हूँ! – अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज

रावण दस – मेरा वंश पापियों का नहीं, पुण्यात्माओं का है पिछली बार मैंने आपको अपने अच्छे और सच्चे पहलुओं से परिचित करवाने का वादा किया था, आज उसी को निभा रहा हूं। शुरुआत करता हूं वहां से, जहां मैंने जन्म लिया… किसी भी व्यक्ति की पहचान वैसे तो उसके व्यक्तित्व से होनी चाहिए लेकिन […]

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भाग एक : मैं रावण… भविष्य का तीर्थंकर! – अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज

रावण@ दस : भाग एक पूरा देश मुझे यानि रावण को जलाने के लिए मेरा पुतला बनाने में जुट गया है… अब जलाने के लिए मेरा प्रतीक पुतला तो बनाओगे ही ना। मैं रावण, एक प्रकाण्ड पंड़ित, अनन्य ईश्वर भक्त, विद्वान, अत्यंत बलशाली पर आज मुझे इस तरह कोई नहीं जानता, सब मुझे केवल और […]

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